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________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ एवं पांच नांगा थाय. एम ए सुनग, उौंग तथा श्रादेय, अनादेयने विषे श्रागडे पण सर्वत्र मतांतरना नांगानो नेद जाणवो. ते पोतानी मतियें विचारी लेवो. तथा तेहिजपंचेंजिय जीव शरीरस्थने अवतस्या पली ते एकवीशना उदयमाहेश्री तिर्यंचानुपूर्वीनो उदय टालीयें, अने औदारिकटिक, उ संघयणमांहेलु एक संघयण, ब संस्थानमांहेदूं एक संस्थान, उपघात अने प्रत्येक, ए बनो उदय नेलीयें, तेवारें बबीशन उदयस्थानक थाय. तिहां पर्याप्त साथें संघयण गुणतां नांगा थाय, तेने उ संस्थाने गुणतां त्रीश थाय. ते सौजाग्य अने दौर्जाग्य साथें गुणतां बहोत्तेर थाय. ते श्रादेय अनादेय साथें गुणतां एकसो ने चुम्मालीश थाय. ते यश, अयश साथें गुणतां बसें ने अव्याशी नांगा थाय, अने अपर्याप्ताने हुंडसंस्थान, बेवहुं संघयण, दौ ग्य, अनादेय अने अयशःकीर्त्तिने उदयें एकज नांगो होय. केमके अपर्याप्ताने परावर्त्तमान अशुज प्रकृतिनोज उदय होय, पण शुन प्रकृतिनो उदय न होय, तेमाटें एकज नांगो थाय. एम बसें ने नेव्याशी नांगा थया, तथा मतांतरें बेबीशने उदयें एकसो पीस्तालीश नांगा पण होय. ते शरीर पर्याप्तें पर्याप्ता थया पठी एक पराघात, बीजी शुन अशुनखगतिमाहेली एक, ए बेनो उदय नेलतां अहावीशनो उदय थाय. तिहां पर्याप्ताना पूर्वोक्त बसें श्रव्याशी जांगाने बे विहायोगतियें गुणतां पांचसे ने बहोंत्तेर नांगा थाय. अहींयां अपर्याप्तो न होय, माटें तेनो एक नांगो न लेवो. ते श्रहावीशमध्ये श्वासोश्वास पर्याप्तियें पर्याप्ताने एक नश्वासनो उदय वधारतां उगणत्रीशनो उदय थाय. अहींयां पण पूर्वली पेरें मांगा (५७६ ) जाणवा, अथवा शरीर पर्याप्तियें पर्याप्ताने श्वासोश्वास विना एक नद्योतनो उदय अहावीशमाहे नेलतां गणत्रीश प्रकृतिनुं उदयस्थानक थाय, तिहां पण (५७६) नांगा थाय. एम उंगणत्रीशने उदयें सर्व थश्ने ( ११५५ ) नांगा थाय. तेवार पड़ी भाषापर्याप्तियें पर्याप्ताने ते उगणत्रीशमाहे सुखर अथवा फुःखरमांहेली एक नेलतां त्रीशनो उदय थाय. अहीं जे पूर्व श्वासोश्वासने उदयें (५७६) नांगा कह्या तेने सुखर कु.स्वरने विकल्पं बमणा करतां ( १९५५ ) नांगा थाय, अथवा श्वासोश्वास पर्याप्तियें पर्याप्ताने स्वरना उदय विना उद्योतनो उदय पूर्वोक्त गणत्रीशमाहे नेलीये, तेवारें त्रीशनो उदय थाय. तिहां पण पूर्ववत् (५७६) नांगा थाय. एम सर्व मली त्रीशने उदय (१७२७) नांगा थाय. तथा स्वर सहित त्रीशना उदयमांहे उद्योतनो उदय नेलता एकत्रीश- उदयस्थानक थाय. अहीं जे पूर्व स्वर सहित त्रीशने उदय नांगा ( १९५२ ) कह्या , तेटलाज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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