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________________ 990 सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ होय. तिहां जांगो एक जाणवो. केमके वायुकायने श्रातप, उद्योत तथा यशःकी. तिनो उदय पण नथी तेमाटें. अहीं बीजा जांगा न पामीये. एम बीश प्रकृतिने जदयें सर्व मली तेर नांगा थाय. तथा ते श्वासोश्वास पर्याप्तिये करी पर्याप्ताने श्वासोश्वास सहित बव्वीशना उदयमांहे, श्रातप तथा उद्योत, ए बे मांहेला एकेकनो उदय नेलतां सत्तावीशनो उदय थाय. तिहां पूर्वली पेरें बबीशना उदयमांहे उद्योतन्नेलतां चार अने यातप नेलतां बे, एवं ए नांगा जे पूर्वे कह्या, तेज अहीं पण जाणवा. जे नणी कांबे के, “ एगेंदिय उदयेसु, पंचयएकार सत्ततेरसय ॥ बकं कमसो नंगा, बायाल हुँति सवेवि ॥” एम एकेजियना उदयस्थानकने विषे एकवीशना उदये पांच, चोवीशना उदयें अगीवार, पच्चीशना उदयें सात, बबीशना उदयें तेर अने सत्तावीशना उदयें उ, ए रीतें पांच उदयस्थानकें अश् सर्व मली बेंतालीश जांगा होय. हवे बेंडियनी एकवीश, बबीश, अहावीश, गणत्रीश, त्रीश अने एकत्रीश, ए ब उदयस्थानक होय. तिहां नांगा कहे बे. तिहां २ तिर्यंचटिक, ३ बेंजियजाति, ५ त्रस, ५ बादर, ६ पर्याप्त, दौर्जाग्य, अनादेय, ए यशःकीर्ति अथवा अयशःकीर्ति, ए नव प्रकृति थ. एनी साथें बार ध्रुवोदयी प्रकृति मेलवतां एकवीश प्रकृतिनुं उदयस्थानक विचालें विग्रहगतियें वर्तता जवने अपांतरालगतियें बेंद्रिय जीवने होय. अहीं अपर्याता साथें अयशःकीर्ति लेतां नांगो एक थाय, तथा पर्याप्ता साथें यशःकीर्ति अने अयशःकीर्ति लेतां बे नांगा पर्याप्ताना थाय. एवं सर्व मसी त्रण मांगा थाय. हवे ते बेंजियने स्वस्थाने अवतस्या पली ते पूर्वोक्त एकवीश प्रकृतिना उदयस्थानक मांहेथी तिर्यगानुपूर्वी काढीयें, अने औदारिकटिक, डंडसंस्थान, बेवहुं संघयण, उपघात अने प्रत्येक, ए प्रकृति नेलीयें, तेवारें बबीश प्रकृति, उदयस्थानक होय. अहीं पण पूर्वली पेरें नांगा त्रण थाय. तेवार पठी शरीर पर्याप्तियें पर्याप्ताने पराघात तथा अशुजखगति, ए बे प्रकृतिनो उदय वधे, तेवारें अहावीश प्रकृतिनुं जदयस्थानक थाय. अहींयां यशःकीर्ति तथा अयश कीर्तियें करीने नांगा बे थाय, केम के अशुनखगतियें अपर्याप्त नामनो उदय नहोय, ते माटें तेनो एक नांगो पूर्वोक्त त्रण माहेथी टले शेष बेनांग होय. ते वली श्वासोश्वास पर्याप्तियें पर्याप्ता थया पठी श्वासोश्वासनो उदय वधे, तेवारे उगणत्रीशने उदयें पण तेमज पूर्वोक्त रीतें बे नांगा होय, अथवा शरीर पर्याप्तियें पर्याप्ताने ते अहावीशना उदयमांहे जश्वासना उदय विना उद्योतनो उदय नेलतां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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