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________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ.६ ए होय. अहींयां पूर्वोक्त पांच जांगाने प्रत्येक तथा साधारण साथै बे गुणा करीयें, तेवारें दश नांगा थाय. तेमांहे एक नांगो वैक्रियनो नेलीयें, जे जणी बादर वायुकाय वैक्रियशरीर करे ने तिहां पण चोवीशनो उदय होय, पण एटलुं विशेष जे औदारिकशरीरने स्थानकें वैक्रियशरीर कहे. तिहां बादर, प्रत्येक, पर्याप्त अने अयशःकीर्ति साथें एकज नांगो होय, जे जणी तेउकाय तथा वायुकायने साधारण तथा यशःकीर्त्तिनो उदय न होय, तेथी तेना नांगा न उपजे. एम सर्व मलीने चोवीशने उदयें अगीआर नांगा थाय. तेवार पड़ी ते शरीर पर्याप्ताने चोवीशना उदयमांहे पराघातनो उदय नेलीयें, तेवारें पच्चीश प्रकृतिनो उदय थाय. ए उदय शरीर पर्याप्ति पूरी कस्या पठी होय. तिहां बादर पर्याप्त साथे प्रत्येक तथा साधारण गुणतां बे नांगा थाय, ते यश-कीर्ति तथा अयशःकीर्ति साथै गुणतां चार लांगा थाय. तेमज बादरने स्थानकें सूक्ष्म साथें प्रत्येक अने साधारणना विकल्पं वे नांगा थाय. ए बे लांगे एकली श्रयशकीर्तिज लाने, पण यशःकीर्त्ति न लाने, माटें तेना नांगा न लेवा. एवं उ नांगा थया. तथा बादर वायुकायने वैक्रिय करतां शरीर पर्याप्तियें पर्याप्ता थया पनी पराघातनो उदय नेलतां पण पच्चीश प्रकृतिनुं उदयस्थानक लाने, तिहां पण पूर्वली पेरें एकज नांगो होय. एम सर्व मली पच्चीशने उदयें सात नांगा थाय. तथा श्वासोश्वासपर्याप्तियें करी पर्याप्ता थया पली ते पच्चीशना उदय मांहे वली श्वासोश्वासनो उदय नेलीये, तेवारें वीश प्रकृतिनुं जदयस्थानक थाय. अहीं पण पूर्वली पेरें नांगा थाय, अथवा शरीरपर्याप्तं पर्याप्ताने उश्वासने अनुदयें एटले ज्यांसुधी श्वासोश्वास पर्याप्ति पूर्ण न थाय, त्यांसुधी उश्वासना उदय विना उद्योतनो उदय होय, तेवारें पण बबीश- उदयस्थानक थाय. तिहां बादरने उद्योत सहित बबीशने उदयें प्रत्येक साथें एक नांगो, तेमज साधारण साथे बीजो नांगो, ते बे नांगा यशःकीर्ति साथे लेवा, तथा तेहिज बे जांगा अयशःकीर्ति साथै सेवा. एम चार नांगा थाय. तथा उद्योतने स्थानकें श्रातपनो उदय नेलतां पण बबीशनुं उदयस्थानक थाय. तिहां प्रत्येकने यश तथा श्रयशें करी बे नांगा थाय, केमके श्रोतप ते पृथवीकायमांहेज होय, माटें एक प्रत्येकज लीधो अने उद्योत तो वनस्पतिमाहे पण होय, माटें तिहां प्रत्येक अने साधारण बेहु लीधा, तथा आतप अने उद्योतनो उदय ते बादरनेज होय, पण सुमनें न होय, माटें यहीं सूक्ष्मनो उदय न लीधो, तथा बादर वायुकायने वैक्रिय करतां श्वासोश्वास पर्याप्तियें करी पर्याप्ता वायुकायने ते पच्चीश प्रकृति मध्ये उश्वासनो उदय नेलतां बबीशनो उदय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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