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सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६
उदयस्थानक, तेवार पटी चडवी सगाउएगा हियायश्गतीसा के० चोवीश प्रकृतिनां उदयस्थानकथी मांगीने एकेक प्रकृतियें अधिक करतां निरंतरपणे एकत्रीश प्रकृति लगें आठ, उदयहणाणिजवे के० उदयनां स्थानक होय, एटले चोवीशनुं, पच्चीशनुं, बनुं, सत्तावीशनुं, अहावीशनुं, उगणत्रीशनुं, त्रीशनुं अने एकत्रीशनुं, ए आठ थयां, अने बे पूर्वला मली दश उदयस्थानक थयां, तथा गीधारमुं नव के० नव प्रकृतिनुं उदयस्थानक ने बारमुं य के आठ प्रकृतिनुं उदयस्थानक, ए बार उदयस्थानक, हुंति नामस्स के० नामकर्मनां होय. ॥ इत्यक्षरार्थः ॥ २८ ॥ हवे एनुं विवरण लखियें बैयें. एकेंद्रियादिकनी अपेक्षायें अनेक जांगा उपजे, ते देखाडे बे. तिहां एकै प्रियने एकवीरा, चोवीश, पच्चीश, बवीश अने सत्तावीश, ए पांच उदयस्थानक होय. तिहां १ तैजस, २ कार्मण, ३ अगुरुलघु, ४ स्थिर, ५ अस्थिर, ६ शुभ, अशुभ, वर्ण, ए गंध, १० रस, ११ स्पर्श, १२ निर्माण, ए बार प्रकृतिनो उदय ध्रुव बे. तेमाटें ए नामकर्मनी ध्रुवोदथिका बार प्रकृति तेरमा गुणठाणा लगें उदय आश्रीने सर्व जीवने होय, माटें सर्वत्र लेवी, अने २ तिर्यंचद्विक, ३ स्थावर, ४ एकेंद्रियजाति, ५ बादर अथवा सूक्ष्म, पर्याप्त अथवा अपर्याप्त, 9 दौर्भाग्य, श्रनादेय, एयशः कीर्त्ति अथवा अयशःकीर्त्ति, ए नव प्रकृति, पूर्वोक्त बार प्रकृतिमांदे जेलीयें, तेवारें एकवीश प्रकृतिनुं उदयस्थानक, एकेंद्रिय जीवने पूर्वला जवनुं शरीर मूक्या पढी जिहां लगें आगलें जइ श्रवतस्या नथी तेने वचालें जाणवो; एटले जवने अपांतरालें वर्त्तता एकेंद्रियने होय. यहीं जांगा पांच उपजे, ते कहे बे. एक सूक्ष्म पर्याप्त साथै एकवीशने उदयें, बीजो बादर पर्याप्त साथै एकवीशने उदयें, ए बे जाँगा पर्याप्तना
या, तेमज वली अपर्याप्त सार्थे पण बे जांगा थाय. ए चार जांगा थया, तेमांदेला सूक्ष्म पर्याप्त श्रने सूक्ष्मपर्याप्त तथा बादर अपर्याप्त, ए त्रण जांगा तो यशःकीर्ति सायें होय, पण तिहां यशःकीर्त्तिनो उदय न होय " गोसुदुम तिगेएजसं " ए वचनथी जाणवुं श्रने बादर पर्याप्त साथै यशःकीर्त्ति सहित एकवीशने उदयें एक जांगो तथा व्ायशःकीर्ति सहित एकवीराने उदयें बीजो जांगो, ए बे जांगा पूर्वला त्रण जांगा सायें मेलवतां पांच नांगा था. अहीं जे जीव, आगलें पोताने योग्य सर्वे पर्याप्त पूर्ण करशे, तेने योग्यपणे करी लब्धि आश्रयीने नवांत - रा पण पर्याप्तो कहीयें. यहीं लब्धि पर्याप्तानीज विवक्षा जाणवी.
तेवार पढी ते शरीरस्थने ते एकवीश प्रकृतिना उदयमांहे एक औदारिक शरीर, बीजुं हुं संस्थान, त्रीजुं उपघात, चोथो प्रत्येक अथवा साधारण, ए चार प्रकृति क्षेपीयें, अने एक तिर्यंचनी श्रानुपूर्वी काढी यें, तेवारें चोवीश प्रकृतिनुं उदयस्थानक
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