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________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ ७६७ वाला बांधे. अहींयां सर्व परावर्त्तमान मांदेली अशुजप्रकृतिज बांधे, माटें विकल्प नहीं, तेथी नांगो पण एकज होय. . हवे देवगति प्रायोग्य बंध व्युछेद पामे थके पण अपूर्वकरणना सातमा नागथी मामीने सूक्ष्मसंपराय गुणगणाना अंत पर्यंत पण एकज यशःकीर्ति नामकर्मनी प्रकृतिने एकला मनुष्य बांधे. तिहां एकनुं बंधस्थानक लेवु.॥इति समुच्चयार्थः॥२६॥ ॥ श्रथैकस्मिन् बंधस्थाने कति नंगाः सर्वसंख्यायाः स्युरित्याह ॥ ॥ हवे कया बंधस्थानकें केटला नांगा, सर्व संख्यायें होय, ते कहे . ॥ चन पणवीसा सोलस, नव बाण नई सयाय अडयाला ॥ एयालुत्तर गया, लसया इकिकि बंध विदि ॥२७॥ अर्थ-अपर्याप्ता एप्रिय प्रायोग्य त्रेवीश प्रकृतिने बंधे चउ के चार मांगा होय, तथा पच्चीशने बंधे एकेंजिय प्रायोग्य वीश, बेंजिय प्रायोग्य एक, तेंजिय प्रायोग्य एक, चौरिंजिय प्रायोग्य एक, पंचेंजिय तिर्यंच प्रायोग्य एक, अने मनुष्य प्रायोग्य एक, एवं पञ्चीशने बंधे पणवीसा के पच्चीश नांगा होय, तथा एकेजिय बबीशने बंधे सोलस के शोल नांगा होय, तथा देव प्रायोग्य अहावीशने बंधे थाउनांगा अने नरक प्रायोग्य अहावीशने बंधे एक नांगो, एवं अहावीशने बंधे नव के नव नांगा होय. तथा बेंजिय प्रायोग्य पाठ,तेंजिय प्रायोग्य बात, चौरिंजिय प्रायोग्य आग,पंचेंजियतिर्यंच प्रायोग्य बेतालीशसे ने श्राप, पंचेंजियमनुष्य प्रायोग्य तालीशसें ने श्राप अने देवप्रायोग्य आठ, एवं सर्व मली जंगणत्रीश प्रकृतिना बंधस्थानकें बाणनईसयायअडयाला के बाणुसें ने श्रमतालीश नांगा होय, तथा बैंजिय प्रायोग्य पाठ, तेंजिय प्रायोग्य आउ, चौरिजिय प्रायोग्य श्राप, पंचेंजियतिर्यंच प्रायोग्य बेंतालीशसें ने श्राप, मनुष्य प्रायोग्य पाठ अने देव प्रायोग्य एक, एवं सर्व मलीने त्रीश प्रकृतिने बंधस्थानकें एयालुत्तरदायालसया के तालीशसें ने एकतालीश नांगा थाय, थने एकत्रीश प्रकृतिने बंधस्थानकें देव प्रायोग्य, इकिकिबंधविहि के० एकविध बंधनो एकज नांगो होय. ए सर्व मली आठे बंधस्थानकें थश्ने नामकर्मना ( १३ए४५ ) तेर हजार, तवसे ने पिस्तालीश जांगा थाय. ए नामकर्मना नांगा कह्या. इति समुच्चयार्थः ॥७॥ ॥ श्रथ उदयस्थानान्याह ॥ हवे नामकर्मनां बार उदयस्थानक कहे . ॥ वीसिगवीसा चळवी, स गान एगादि याय गतीसा ॥ उदयहाणाणि नवे, नव अध्य हुँति नामस्स ॥२॥ अर्थ-वीसिगवीसा के प्रथम वीश प्रकृतिनुं उदयस्थानक, बीजें एकवीशर्नु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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