SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 775
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ.६ अहीं साखादनना बे नेद बे. एक उपशम श्रेणिगत, बीजो अश्रेणीगत, तिहां श्रश्रेणीगतने विषे तो ए त्रण उदयस्थानक होय, अने श्रेणीगतने विषे वे आचार्यना श्रादेश जाणवा, ते कहे. एक जे अनंतानुबंधीयाने उपशमावीने श्रेणी करे, अने श्रेणीथी पमतो सास्वादन गुणगणुं स्पर्श, तेने मतें तो ए पूर्वे कह्यां तेहीज प्रण उदयस्थानक जाणवां. श्रने जे श्राचार्य अनंतानुबंधीया चारनी विसंयोजनायें श्रेणीनो प्रारंन माने जे, तेने मते श्रेणश्री पमतां अनंतानुबंधीयानी सत्ताने अनावें अनंतानुबंधीयाना उदय रहित सास्वादनपणुं न घटे, जे लणी “ अस्स सासणनावोन नवश्,” एम चूर्णिकारनुं वचन डे माटे. अने जो सम्यक्त्वथी पड्यो ते ज्यां सुधी मिथ्यात्व नूमीने विषे नथी पहोतो तेना वचला कालमां अनं. तानुबंधीपाना उदय विना पण सास्वादन गुणगणुं पामीयें, एम कहीयें तो तिहां उ प्रकृतिनो उदय मान्यो जोश्ये, तेवारें एकवीशने बंधे थी मांडीने नव लगेंना चार उदयस्थानक मान्यां जोश्ये, तेवारें तो तिहां नांगानी चोवीशी पण आठ मानवी जोश्ये. ते अहीं सूत्रकार को कारणे मानी नथी, ते जणी एने मते श्रेणीथी पमतां सास्वादन न होय, एमज कहेवू. हवे बाइअनवसत्तरसे के “ सप्तदशबंधस्थानके षमादीनि नव पर्यंतानि चत्वारि उदयस्थानानि नवंति" एटले सत्तर प्रकृतिने बंधे आदें देश्ने नव लगें चार उदयनां स्थानक होय. अहीं सत्तरनो बंध त्रीजे तथा चोथे गुणगणे होय, तिहां जे मिश्रगुणगणे सत्तरनो बंध होय, तेने विषे सात, आठ अने नव, ए त्रण उदयस्थानक होय, एटले एक मिश्रमोहनीय, बे युगलमांहेद्यं एक युगल, त्रण वेदमांहेलो एक वेद, अने अनंतानुबंधीया विना शेष त्रण कषायनो एकेको नेद, ए सात प्रकृतिनो उदय, मिश्रगुणगणे होय. श्हां पूर्वली पेरें नांगानी चोवीशी एक थाय, तथा ए साथें जय मेलवतां श्राउने उदयें पण नांगानी चोवीशी एक थाय, तथा जयने स्थानकें जुगुप्सा मेलवीयें, तेवारें पण आउने उदयें नांगानी एक चोवीशी थाय, तथा नय श्रने जुगुप्सा बे सामटी मेलवतां नवने उदय पण नांगानी चावीशी एक थाय. एवं मिश्रगुणगणे सत्तर बंधे नांगानी चार चोवीशी थाय. तथा चोथे गुणगणे सत्तरना बंधे ब, सात, आठ अने नव, ए चार उदयनां स्थानक, दायिक सम्यकदृष्टिने होय. तिहां मिश्रने जे सातनो उदय कह्यो, ते मध्येयी मिश्रमोहनीय विना चोथे गुणगणे बनो उदय लेखवतां नांगानी चोवीशी एक थाय, ते उ प्रकृतिना उदय मध्ये जय, जुगुप्सा तथा सम्यक्त्वमोहनीय ए एके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy