SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 776
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्ततिकानामा षष्ट कर्मग्रंथ. ६ कनो उदय मेलवतां त्रण प्रकारें सातनो उदय थाय. तिहां एकेका नेदें एकेकी नांगानी चोवीशी थाय, तेवारें सातने उदयें त्रण,चोवीशी नांगानी थाय. तथा ते ना उदयमांहे जय अने जुगुप्सा अथवा जय अने वेदकसम्यक्त्वमोहनीय अथवा जुगुप्सा अने वेदकसम्क्त्वमोहनीय, ए रीतें बेबे प्रकृति सामटी ज्नेलीयें, तेवारें त्रण प्रकारें आग्नुं उदयस्थानकं थाय, तिहां पण प्रत्येकें नांगानी एकेकी चोवीशी गणतां त्रण चोवीशी नांगानी थाय. वहीं सम्यक्त्वमोहनीयना जे नांगा, ते वेदकसम्यकूदृष्टिने जाणवा, अने दायिक तथा उपशमसम्यक्दृष्टिने सम्यक्त्वमोहनीयनो उदय नथी, ते जणी तेने न जाणवा. तथा ते बना उदय, ते मध्ये नय, जुगुप्सा अने वेदकसम्यक्त्वमोहनीय, ए त्रणे प्रकृतिनो उदय सामटो मेलवीयें, तेवारें नव प्रकृतिनो उदय थाय. तिहां पण एक चोवीशी जांगानी थाय. एम सर्व मली चोथे गुणगणे श्राठ चोवीशी नांगानी थाय. ते मध्ये चार दायिक तथा उपशमसम्यकदृष्टिने लेवी, तथा चार दायोपशमिक सम्यकदृष्टिने मिश्रनी पेरें लेवी. तथा ए आठ चोवीशी साथें मिश्रगुणगणानी चार चोवीशी मेलवतां सत्तरने बंधस्थानकें बार चोवीशी नांगानी होय. यद्यपि त्रीजे अने चोथे गुणगणे उदयस्थानक तो तेहीज ने पण तिहां प्रकृति जूदी बे, माटें बे वार लीधा बे. तथा तेरंपंचाश्अहेव के० " त्रयोदश बंधस्थानके पंचादीनामष्टपर्यंतानि चत्वारिउदयस्थानानि स्युः" एटले तेर प्रकृतिने बंधे पांच श्रादें देश आठ लगें चार उदयनां स्थानक होय, एटले पांच, उ, सात अने थाउ, ए चार उदयस्थानक होय, तिहां एक प्रत्याख्यानी क्रोध, बीजो संज्वलनक्रोध,त्रीजो पुरुषवेद,एक युगल,एवं पांचनोउदय होय. थहीं क्रोधने स्थानकें मान, माया अने लोन साथे परावर्त करतां चार मांगा पुरुषवेद साथे थाय.अने जेवारें पुरुषवेदने स्थानकें स्त्रीवेद लश्य,तेवारें पण चार नांगा थाय, श्रने नपुंसकवेद साथे पण चार नांगा थाय. एवं बार नांगा थया.पली हास्य अने रति, ए युगलने स्थानकें शोक अने अरति ए युगल वेश्ये, तो तेंनी साथे पक्षी बीजा बार नांगा थाय. एम नांगानी एक चोवीशी पांचने उदयें थाय. तेमध्ये वली जय अथवा जुगुप्सा अथवा सम्यक्त्वमोहनीय, ए त्रण प्रकृतिमाहेली एकेक मेलवतां बनो उदय त्रण नेदे थाय. तिहां एकेके नेदें एकेक चोवीशी करतां त्रण जेवें बना उदयें त्रण चोवीशी नांगानी थाय, तथा ते पांचना उदयमांहे जय, जुगुप्सा अथवा जय अने सम्यक्त्वमोहनीय अथवा जुगुप्सा अने सम्यक्त्वमोहनीय, ए बे बे प्रकृतिनो उदय सामटो मेलवतां सात प्रकृतिनां उदयस्थानक त्रण थाय. तिहां पण लांगांनी चोवीशी त्रण थाय, तथा ते पांचना उदयमांहे जय, जुगुप्सा अने सम्यक्त्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy