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________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ ४ मे तेनो उदय संक्रमावलिक थया पढी उदयाव लिकायें यावे, तेमाटें अनंतानुबंधी नो बं धावलिका पढी उदय कहीयें. अहींयां कशुं विरुद्ध, नथी. ए वात श्री विशेष कम्म पयमी की जाणवुं; तेमाटें मिथ्यात्वगुणठाणे पण बंधसंक्रमावलिका लगें तो प्रत्याख्यानादिकण कषायनोज उदय होय, केमके एक वेदातें जेटलानो जे गुणठाणे उदय होय, तेटला सर्व समान जातीय माटें तिहां वेदाताज कहीयें. जेमाटें क्रोधादिक चार परस्परें विरुद्ध बे, माटें तेमांहेलो एकनोज समकालें उदय होय, परंतु तिदां एक अनंतानुबंध क्रोध वेदतां सजातीयपणामाटें प्रत्याख्यानादिक बीजा त्रणे क्रोध समकालें सार्थेज वेदाय, परंतु तेनी सायें ते समयें बीजा मानादिकन वेदाय, तेमादें पूर्वोक्त प्रकारें मिथ्यात्वें पण बंधसंक्रमावलिका पठी अनंतानुबंधिच्यानो उदय होय. हवे ए सात प्रकृतिना उदय मध्यें जय अने जुगुप्सा, ए वे प्रकृतिनो उदय वधारीयें, तेवारें नवनो उदय याय. अहीं पण पूर्वी पेरें जांगानी एक चोवीशी थाय, तथा ते सात मध्यें जय ने अनंतानुबंधीयानो उदय मेलवीयें, तेवारें पण नवनो उदय था. यहींथां जांगानी बीजी चोवीशी थाय, तथा ते सात मध्यें जुगुप्सा ने अनंतानुबंधी, ए वे प्रकृति मेलवतां पण नवनो उदय थाय, तिहां जांगानी त्रीजी चोवीशी थाय. एम नवने उदयें सर्व मली जांगानी त्रण चोवीशी थाय. तथा एक मिथ्यात्व बीजुं जय, त्रीजी जुगुप्सा, चोथुं हास्य, पांचमुं रति श्रथवा एने स्थानकें शोक अने घरति पण लइयें, बहो त्रण वेदमांहेलो एक वेद, तथा अनंतानुबंध श्रादिक चारे कषाय, एवं दशनुं उदयस्थानक जेवारें होय, तेवारें पण पूर्वी पेरें जांगानी एक चोवीशी थाय. एम बावीशना बंधे सातनुं, श्रावनुं, नवनुं, दशनुं, ए चार उदयस्थानकें सर्व संख्यायें आठ चोवीशी जांगानी थाय. तथा नवगवी से सत्ताइ के० " एकविंशतिबंधे सप्तादीनि नव पर्यंतानि त्रीणि उदयस्थानानि जवंति " एटले एकवीश प्रकृतिने बंधें सात यादें देने नव लगें त्रण उदय स्थानक होय. तिहां प्रथम एक युगल, त्रण वेदमांहेलो एक वेद, चार कषायमाला क्रोधादिक एक कषायना चार भेद, एम सात प्रकृतिने उदयें पूर्वली पेरें जांगानी एक चोवीशी थाय. ए सातना उदयने जयना उदय सहित करतां आनो उदय थाय. तिहां पण जांगानी एक चोवीशी थाय. तथा जुगुप्सानो उदय मेलवतां पण वनो उदय थाय, तिहां पण मांगानी एक चोवीशी थाय, तथा जुगुप्सा, ए वे प्रकृतिनो उदय सामटो मेलवतां नवनो उदय थाय. तिहां पण पूर्वी पेरें जांगानी एक चोवीशी थाय. एम एकवीश प्रकृतिने बंधें सास्वादन गुणाने विषे त्र उदयस्थानकें यइ जांगानी चोवीशी चार थाय. Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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