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________________ १४२ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ गोत्रकर्मने विषे संवेध कहीने पढी मोहपरंतु के० मोहनीयकर्मना बंधादिक स्थानक गले कही शुं ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ १० ॥ ॥ हवे ए त्रण कर्मना जांगा गाथायें करी कहे बे. ॥ गोम्मि सत्त जंगा, अन्य जंगा, दवंति वेय लिए । पण नव नव पण जंगा, आन चउकेवि कमसोन ॥ ११ ॥ अर्थ- गोम्मिसत्तगंगा के० गोत्रकर्मने विषे सात जांगा जाणवा. छाने वेयलिए के० वेदनीयकर्मने विषे श्रयजंगाहवंति के व जांगा होय, तथा पण के पांच, नव के० नव, वली नव के० नव, पण के० पांच, ए चार प्रकारें मलीने हावी जंगा के जांगा ते श्रउचक्के वि के० नरकादि चार श्रायुखाने विषे कमसो के० अनुक्रमें होय ॥ ११ ॥ ॥ हवे मोहनीयकर्मनां बंधादिक स्थानक कहे . ॥ बावीस इक्कवीसा, सत्तरसं तेरसे व नव पंच ॥ चन तिग डुगचं इक्कं बंधठाणाणि मोदस्स ॥ १२ ॥ " - एक बावनुं बंधस्थानक, बीजुं एकवीशनुं बंधस्थानक, त्रीजुं सत्तरनुं बंधस्थानक, चोथुं तेरनुं बंधस्थानक, पांचमुं नवनुं बंधस्थानक, बहु पाँचनुं बंधस्थानक, सात चारनुं बंधस्थानक, श्रावमं त्रणनुं बंधस्थानक, नवसुं वे प्रकृतिनुं बंधस्थानक अने दशमुं इक्कं के० एक प्रकृतिनुं बंधस्थानक, ए बंधद्वाणाणि मोहस्स के प्रकृतिबंधकरूप दश बंधनां स्थानक मोहनीयकर्मनां जाणवां. तिहां प्रथम बावीश प्रकृतिनुं बंधस्थानक केम होय ? ते कहीयें ढैयें. मोहनीयनी हावी प्रकृति बे, तेमां सम्यक्त्व छाने मिश्र, ए वे मोहनीय बंध योग्य नथी, तेमाटें बाकी बवीश बंध योग्य रही. तेमांथी पण त्रण वेद मध्यें एक समये एकज वेदन बंध होय, ए विरोधिनी प्रकृति जणी बीजा वे वेदनो बंधन होय, तेमाटें बाकी चोवीश रही, तेमांथी पण हास्य अने रतिनो जेवारें बंध होय, तेवारें एनी विरोधिनी शोकाने अरतिनो बंध न होय, अने जेवारें शोक ने रति बंधाय तेवारें हास्य ने रति, ए बे प्रकृति न बंधाय, तेथी ए चार प्रकृतिमध्यें एक समयें बेज बंधाय, बाकीनी बे बीजी न बंधाय, तेमाटें ए बे कहामतां शेष मोहनीयनी एक समयें उत्कृष्टी तो बावीश प्रकृति बंधाय, पण अधिक न बंधाय; ए बावीश प्रकृतिना बंधनुं स्थानक, मिथ्यात्वगुणठाणे होय. ते अजव्यनी अपेक्षायें अनादि - नंत जांगे होय, तथा जव्यनी अपेक्षायें अनादिसांत तथा सादिसांत, ए बे जांगे Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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