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________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ ७३ए जिहां लगें परनवन श्रायुं बांध्युं न होय, तिहां लगें एकज आयु वर्ते बे, तेनीज सत्ता जाणवी थने परजवायु बंधकालें तथा बांध्या पडी मरण समय पर्यंत बे आयुनी सत्ता होय, तेवारें एक तो जे गतिमा वर्ते ने तेनो उदय तेनी सत्ता होय, अने बीजो परजवायु बांधे तेनी सत्ता होय, ए वे सत्ता स्थानक जाणवां. .. हवे संवेध कहीयें बैयें. तिहां प्रथम आउखानी त्रण अवस्था कहीये बैयें. पहेली परजवायुबंधना समयथी जे प्रथम ते पूर्वावस्था, बीजी परजवायुबंधकादें बंधावस्था, त्रीजी.परजवायु बांध्या पळीनी परावस्था, तिहां नरकायुनो उदय, नरकायुनी सत्ता, ए नांगो नारकीने परजवना श्रायुबंधकालथकी पहेली अवस्थायें बंधने बनावें प्रथमना चार गुणगणे होय, तथा जे वर्तमाने नारकी डे अने श्रागले नवें तिर्यंच थाशे तेने परजवायुबंधकालें तिर्यंचायुनो बंध, नरकायुनो उदय ने तिर्यगायु तथा नरकायु, ए बेनी सत्ता, ए नांगो मिथ्यात्व तथा सास्वादन, ए बे गुणगणे होय, तेमज जे नारकी, आगले नवें मनुष्य थाशे तेने आयुर्बध कालावस्थायें मनुष्यायुनो बंध, नरकायुनो उदय तथा मनुष्यायु अने नरकायु, ए बेनी सत्ता, ए नांगो पहेले, बीजे अने चोथे, ए त्रण गुणगणे होय. एम ए नारकीने ए बे आयुनोज बंध बे, पण देवता अने नारकीना आयुनो बंध नथी. यमुक्तं "देवनारगेसु नउववजांति” ए वचनथी जाणवू. तथा परनवायु बांध्या पनी उत्तरावस्थायें बंधशून्य बे नांगा होय, ते कहे . एक नरकायुनो उदय अने नरक तथा तिर्यगायुनी सत्ता, बीजो नरकायुनो उदय अने नरक तथा मनुष्यायुनी सत्ता, एम बे नांगा चारे गुणगणे होय. ए रीतें नरकगति मध्ये आयुःकर्मना पांच नांगा लाने, तेमज देवगतिने विषे पण एज पांच नांगा कहेवा, पण एटलुं विशेष जे नरकायुने गमें देवायु कहे. एवं नरक तथा देव, ए बे गतिना दश नांगा थया. हवे तिर्यंच तथा मनुष्यगतिने विषे श्रायु श्राश्री प्रत्येकें नव नव नांगा उपजे, ते लखीयें बैयें. तिहां पण त्रण अवस्था पूर्वली पेरें जाणवी, तेमध्ये तिर्यंचने विषे परनवायु बंधथकी पूर्वे बंधने बनावें तिर्यगायुनो उदय अने तिर्यगायुनी सत्ता, ए नांगो पांच गुणमणां पर्यंत लाने, अने मनुष्यने मनुष्यायुनो उदय अने मनुष्यायुनी 'सत्ता, ए नांगो चौदे गुणगणे लाने, अने परजवायुबंधकालावस्थायें तिर्यंच तथा मनुष्यने प्रत्येकें चार चार नांगा उपजे, ते कहीयें बैयें. जे तिर्यंच मरीने तिर्यंच थाशे तेने तिर्यगायुनो बंध, तिर्यगायुनो उदय तथा बे तिर्यगायुनी सत्ता होय, केमके एक तिर्यगायु बांधे जे अने बीजो जोगवे हे मात्रै बेनी सत्ता कही, ए नांगोप्रथमनां बे गुणगणां लगें होय, जे जणी श्रागला गुणगणे तिर्यगायुनो बंधज नथी, तेजणी बे गुण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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