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________________ ७३७ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ एमज बच्चउबंधेचेवं के निश्चेथी बने बंधे तथा चारने बंधे पण बेबेनांगा होय, ते कहे . तिहां बनो बंध, चारनो उदय अने नवनी सत्ता,ए प्रथम नांगो. तथा बनो बंध, पांचनो उदय श्रने नवनी सत्ता, ए बीजो जांगो. एवं बे नांगा, त्रीजो, चाथो, पांचमो, हो, सातमोश्रने पाठमा गुणगणाना प्रथम नाग लगें होय, जे जणी त्रीजा गुणगणा थकी थीणद्धित्रिक टालीने बाकी प्रकृतिनो बंध होय, तथा उदय तो चारनो ध्रुव होय, अथवा जेवारे निजानो उदय होय, तेवारें पांच प्रकृतिनो उदय पूर्वली पेरें होय, अने सत्ता तो नवनीज होय. दपक साधुने आठमाना प्रथम नागें बनो बंध, चारनो उदय अने बनी सत्ता, ए एकज नांगो पामोयें, जे जणी तेने अतिविशुकपणे करी कोश्पण निडानो उदय न होय. यमुक्तं सत्कर्मग्रंथे "निदाउगस्स उदउँ, खीणखवगे परिवद्यए” ए वचनथी पांचनो उदय न होय, तथा कोश्एक आचार्य, बारमा गुणगणा लगे निमानो उदय मानीने झपकने पण निसानो उदय कहे . पण ते कम्मपयमीनी साथे विरुफ ने तेथी अहीं विवयो नथी. एमज चारने बंधे पण बे नांगा जाणवा, एटले पांच निझा विना चारनोबंध,चारनो उदय श्रने नवनी सत्ता तथा जेवारें निषा श्रथवा प्रचला, ए बेमांडेली एकनो उदय होय तेवारें चारनो बंध, पांचनो उदय अने नवनी सत्ता, ए बे नांगा आठमाना बीजा नागथी मांडीने अगीधारमा गुणगणां लगे उपशमश्रेणीय होय, अने क्षपकने तो निसाना बनाव जणी पूर्वली पेरें एक नांगोज जाणवो. तथा चउबंधुदएबलंसाय के चारने बंधे नवमा गुणगणाना बीजा जागथी थीणजित्रिक नवमाना प्रथम नागें देपवे तेवारें बनी सत्ता होय, अहींयां अंश शब्दें सत्ता कहीये. " अंसति संतंकम्मं जन्नई” एम चूर्णीवचनथी जाणवू. तेवारें चारनो उदय अने उनी सत्ता होय, ए नांगो दशमा गुणगणाना बेवा समय लगें दपकने होय. एम चारने बंधे त्रण नांगा थया ॥ ए॥ उवरय बंधे चनपण, नवंस चनरुदय बच्चनसंत्ता ॥ वेयणियान अ गोए, विनऊ मोदं परं वुबं ॥१०॥ - अर्थ-हवे उवरयबंधे के बंध विरमे थके अगीश्रारमे गुणगणे चउपणनवंस के चारनो उदय अने नवनी सत्ता तथा पांचनो उदय अने नवनी सत्ता, ए बे लांगा पामीयें, जे जणी उपशांतमोहने निसानो उदय संजवे बे; तेथी पांचनो उदय पण लाने. यहीं पण नवंस शब्दें नवनी सत्ता जाणवी. तथा बारमे गुणगणे हेला समयना आगला समय लगें चउरुदयबच्चऊसंता के चारनो उदय अने बनी सत्ता, ए नांगो होय, अने बेहेले समयें तो चारनो उदय तथा चारनी सत्ता, ए नांगो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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