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________________ ७३६ सप्ततिकानामा पष्ठ कर्मग्रंथ. ६ . कायें तो प्रथम गुठाणाथी मांडी नवमा गुणठाणाना नव जागमांहेला प्रथम जाग लगें होय. तिहां वली श्रीपद्धत्रिकनो कय करे, तेथी तेनी सत्ता टब्या पढी उ प्रकृतिनी सत्ता नवमा गुणवाणाना बीजा जागथी बारमा गुण्ठाबाना द्विचरम समय लगें होय. एनो काल अंतरमुहूर्त्तनो जावो. तथा बारमा गुणगणाने बेद्रेले समयें निद्रा प्रचलाने हयें चारना सत्तास्थानक एक समय लगें होय. तथा उदयाणा के० उदय स्थानक चउपग के० चारनुं तथा पांचनुं, ए डुवे के० वे, दंसणावरणे के० दर्शनावरणीय कर्मने विषे होय; तिहां चतु, अचक्षु, अवधि केवलदर्शनावरणीय, ए चार प्रकृति ध्रुवोदयी बे. ते जणी ए चारनो उदय, सदा होय, माटें एक चारनुं उदयस्थानक मिथ्यात्वथी मांगीने क्षीणमोहना बेहेडा लगें होय, छाने ए चार साथै जेवारें पांचमी एक निद्रानो उदय होय, तेवारें पांचनुं उदयस्थानक बीजं जावं. जे जणी पांच निद्रा अध्रुवोदयी बे ते माटें उदय विरोधी बे, तेथी ए पांच निद्रामांथी एक कार्ले निद्राने उदयें बीजी निद्रानो उदय न होय, तेमाढें जेवारें निद्रानो उदय न होये जवारें चकुदर्शनावरणादिक चारनोज उदय होय, छाने जेवारें निद्रानो उदय होय तैयार पांचनो उदय साथे होय, माटें पांचनुं, अने चारनुं, ए बे उदयस्थानक कह्यां. एम बीज दर्शनावरणीय कर्मना बंधोदय सत्तास्थानक कह्यां ॥ इति ॥ ८ ॥ ॥ हवे ए दर्शनावरणीयना बंधस्थानकादिकनो संवेध, गुणठाणे कहे . ॥ बीयावर नव बं, धएसु चन पंच उदय नव संता ॥ बच्चन बंधे चेवं, चन बंधुदए बलंसाय ॥ ९ ॥ अर्थ- बीघावर के० बीजा दर्शनावरणीयने विषे नवबंधएस के० नवनुं बंधस्थानक, मिथ्यात्व ने साखादन, ए वे गुणवाणाने विषे होय. तिहां चपंचउदय के० चारनुं अने पांचनुं, ए बे उदयनां स्थानक होय. तेमांदे चतुदर्शनावरणादिक चारने उदयें चारनुं उदयस्थानक होय, ने पांच निद्रामांदेली एक कालें एक निद्राने उदयें पांच प्रकृतिनुं उदयस्थानक होय, ने ए बेहु जांगें नवसंता के० सत्तानुं स्थानक तो नव प्रकृतिनुंज होय, एटले नवनो बंध, चारनो उदय ने नवनी सत्ता, ए एक जांगो तथा नवनो बंध, पांचनो उदय ने नवनी सत्ता, ए बीजो जांगो. ए बे जांगा पहेले तथा बीजे गुणगणे लाने. ए बीजा जांगामां एक कालें पांच निद्रामांहेली एकेकी निद्रानो उदय होय, ते एकेकी निद्रानुं नाम लइने कही -. यें, तेवारें एक जांगामां पांच मांगा था. Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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