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सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६
७३३ श्रावनी सत्ता होय; पांचमो बारमे गुणगणे एकनो बंध, सातनो उदय अने सातनी सत्ता; ए पांच नांगा संझीपंचेंजियपर्याप्ताने गुणगणाने नेदें होय. तथा दोनंगाढंतिकेवलिणो के बे नांगा केवलीने होय, ते केम के तेरमे गुणगणे एक वेदनीयनो बंध, चारनो उदय अने चारनी सत्ता, सयोगी केवलीने होय, ए प्रथम नंग. तथा चौदमे गुणगाणे अयोगी केवलीने बंधशून्य होय, अने चारनो उदय तथा चारनी सत्ता होय, ए बीजो नंग जाणवो. ए बे नंग केवलीने होय. यहीं ए नाव जे मनना अनावथी केवलीने सन्नीयापंचेंजियथी जिन्न कह्या, एटले केवलीने अव्यमन होय पण जावमन न होय, माटें संझी पण नहीं, असंझी पण नहीं, परंतु संझासंझी कहीये, तेथी एना नांगा पण जूदा कह्या. एवं सात नांगा चौद जीवस्थानकें कह्या. ॥४॥
॥ हवे एहिज चौद नांगा गुणगणे विवरीने कहे .॥ असु एग विगप्पो, बस्सु विगुण सन्निएसु ७ विगप्पा ॥
पत्तेयं पत्तेयं, बंधोदय संत कम्माणं ॥५॥ अर्थ-एक मिश्र गुणगणुं अने ओउमाथी मांडीने चौदमा सुधीना सात गुणगणां, एवं असु के० आठ गुणगणांने विषे एगविगप्पो के एकेक नांगो होय. ते केम? तोके-त्रीजुं तथा श्रापमुं अने नवमुं, ए त्रण गुणगणे श्रायु न बांधे,माटें सातनोबंध, आपनो उदय अने आपनी सत्ता, ए एकेक नांगो होय, जे जणी ए त्रण गुणगणे श्रायुबंध योग्य अध्यवसाय स्थानक नथी, तेथी आउनो बंध न होय, तथा सूक्ष्मसंपराय गुणगणे श्रायु अने मोह विना बनो बंध, आठनो उदय अने श्राग्नी सत्ता, ए एकज नांगो होय. अगीयारमे गुणगणे एकनोबंध, मोह विना सातनो उदय अने पानी सत्ता,ए एक नांगो होय, तथा बारमे गुणगणे एकनो बंध, सातनो उदय, अने सातनी सत्ता, ए एकज नांगो होय. तेरमे गुणगणे एकनो बंध, चारनो उदय अने चारनी सत्ता, ए एकज नांगो होय. चौदमे गुणगणे बंध शून्य, माटें चारनो उदय श्रने चारनी सत्ता, ए एकज नांगो होय. एवं श्राप गुणगणे एकेक नांगो होय.
तथा बस्सुविगुणसन्निएसु के मिथ्यात्व, सास्वादन, अविरति, देश विरति, प्रमत्त श्रने अप्रमत्त, ए ब गुणगणाने विषे एवी संज्ञा पुविगप्पा के० तेने विषे बे बे विकल्प पामीयें, केम के ए ब गुणगणे श्रायुबंध योग्य अध्यवसाय स्थानक , तेथी श्रायुबंध कालें थानो बंध, थाउनो उदय ने थानी सत्ता, ए नांगो होय; अने आयुर्बध विना सातनो बंध, आपनो उदय अने आउनी सत्ता, ए बीजो नांगो होय; एम ए ब गुणगणे बे बे नांगा होय. एम पत्तेयंपत्तेयं के प्रत्येकें प्रत्येकें,
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