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सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ.६ ए बीजो नांगो, श्रायुबंधने अनावें जघन्य अंतरमुहूर्त अने उत्कृष्टो उ मासे अणो तेत्रीश सागरोपम पूर्वकोमी बिनागें अधिक काल प्रमाण मिथ्यात्वथी मामीने नवमा गुणगणा लगे जाणवो. तथा षड्विध बंध, आपनो उदय अने आपनी सत्ता, ए त्रीजो जांगो, सूक्ष्मसंपराय गुणगणे जघन्य एक समय अने उत्कृष्टो अंतरमुहर्त प्रमाण जाणवो. तिहां मोहनीयनो बंध नश्री, ते माटें कह्यो. तथा एगविहेतिकिगप्पा के एकविध बंधके वेदनीय बांधे, तिहां त्रण नांगा होय, ते कहे जे. एकनो बंध, सातनो उदय अने श्राग्नी सत्ता, ए नांगो उपशांतमोह गुणगणे जघन्य एक समय अने उत्कृष्टो अंतरमुहूर्त लगें पामीयें, केम के अहीं मोहनो उदय नथी, परंतु सत्ता बे, तेमाटें. तथा एकनो बंध, सातनो उदय अने सातनी सत्ता, ए बीजो नांगो दीपमोह गुणगणे अंतरमुहर्त लगें पामीयें, केम के तिहां मोहनीयनी सत्ता पण नथी, ते माटें. तथा एकनो बंध, चारनो उदय अने चारनी सत्ता, ए त्रीजो नांगो सयोगी केवलीने विषेपामीयें; ते घाती कर्मना अनावथी जघन्य अंतरमुहर्त बने उत्कृष्टो देशूणी पूर्वकोडी वर्ष लगे होय.
तथा एगविगप्पाबंधमि के बंधकपणाने अनावें चारनो उदय अने चारनी सत्ता, ए एक नांगो अयोगी गुणगणे पामीयें, यहींयां योगने बनावें बंध न होय माटें प्रबंधक कह्या. एवं सर्व मलीने मूल प्रकृतिना सात जंग थया ॥३॥
॥ हवे ए सात जंग चौद जीवस्थानकें कही देखाडे जे. ॥ सत्त: बंध अहुद, यसंत तेरस सुजीव गणेसु ॥
एगंमि पंच नंगा, दो नंगा हुंति केवलिणो ॥४॥ श्रर्थ-तेरससुजीवगणेसु के एक संझीपंचेंजियपर्याप्ता जीव वर्जिने शेष तेर जीवस्थानकने विषे बे नांगा होय, ते देखाडे . सत्तहबंधश्रदयसंत के सातनो बंध, आउनो उदय अने श्राग्नी सत्ता, ए प्रथम नांगो आयुर्बध काल विना सदा होय, तथा अष्टविध बंध, श्रावनो उदय अने आउनी सत्ता, ए बीजो नांगो श्रायुबंध कालें अंतरमुहर्त लगें होय, अंने एगंमि के एक संज्ञीपंचेंजियपर्याप्ताना जीवस्थानकें पंचनंगा के० धुरला पांच नांगा होय, तिहाँ बे मांगा तो पहेलानी पेरें जाणवा. एटले एक श्रायुबंधकालें पाठनो बंध, श्राफ्नो उदय अने थाउनी सत्ता; बीजो श्रायुबंधकाल विना सातनो बंध, आठनो उदय अने आपनी सत्ता; त्रीजो दशमे गुणगणे मोह अने श्रायु.विना बनो बंध, श्रानो उदय श्रने श्राग्नी सत्ता; चोथा श्रगीश्रारमे गुणगणे एक वेदनीयनो बंध अने मोह विना सातनो उदय अने
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