________________
सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ ।
७३१ नाम, गोत्र, श्रायु अने वेदनीय, ए चार नवोपनाही कर्मनो उदय, तेरमे, चौदमे गुणगणे होय, तिहां जघन्य तो अंतरमुहूर्त्त पर्यंत रहे, अने उत्कृष्टथी तो देशे जणी पूर्वकोमी वर्ष पूर्वली परें नाववां.
हवे कर प्रकृतिने उदयें केटलां उदयस्थानक लाने ? ते कहे . मोहनीय कर्मने उदयें एकज पाठ प्रकृतिनुं उदयस्थानकं लाने, तथा ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय अने अंतराय, ए त्रण कर्मने उदयें तो आग्नुं श्रने सातनुं, ए बे उदयस्थानक खाने, अने बाकीना चार कर्मने उदयें तो दशमा गुणगणा लगें थाग्नुं उदयस्थानक होय, तथा अगीआरमे अने बारमे गुणगणे सातनुं उदयस्थानक होय, अने तेरमे तथा चौदमे गुणगणे चार कर्मनुं उदयस्थानक होय. एवं त्रण उदयस्थानक चार कर्मने उदय होय.
हवे श्राप, सात ने चार, ए त्रण सत्तास्थानक कहे . तिहां आठ कर्मनी सत्तानुं स्थानक, अगीधारमा गुणगणा लगें होय, ए अजव्यनी अपेक्षायें अनादि अनंत अने नव्यनी अपेदायें अनादि सांत नांगें होय. तथा मोहनीय दय कस्या पळी सात कर्मनुं सत्तास्थानक, बारमे गुणगणे अंतरमुहर्त लगें होय, तथा चार घातीयां कर्मने कयें चार कर्मनुं सत्तास्थानक, तेरमे तथा चौदमे गुणगणे होय. ते जघन्यथी तो अंतरमुहूर्त पर्यंत अंतगड केवलीनी अपेक्षायें जाणवो, अने उत्कृष्टथी तो देशे जणी पूर्वकोटी वर्ष प्रमाण जाणवो.
हवे कश कर प्रकृतिनी सत्तायें कयां कयां सत्तास्थानक होय, ते कहे बे. एक मोहनीयनी सत्तायेंथा कर्मनुं सत्तास्थानक होय, मोहनीय विना बीजांघातीआंत्रण कर्मनी सत्तायें श्राग्नुं तथा सातनुं, ए बे सत्तास्थानक होय, अने चार अघातीश्रांनी सत्तायें आठ, सात अने चार, ए त्रणे सत्तास्थानक होय ॥२॥ ॥हवे मूल पाठ कर्मनो बंध, उदय, सत्ता स्थानकनो परस्पर संवेध कहे. ॥ ..
अह विद सत्त बब्बं, धएसु अहे व उदय संतंसा ॥
एग विहे ति विगप्पा, एग विगप्पा अबंधमि ॥ ३॥ ' अर्थ-अहविहसत्तबब्बंधएसु के अष्टविध बंधक,सप्त विध बंधक अने षाविध बंधक, एत्रण बंधकने विषे प्रत्येके अवउदयसंतंसा के श्राठे कर्म प्रकृति उदय अने सत्तायें पामीये. श्रही त्रण जंग थया. ते देखाडे जे. प्रथम आउनो बंध, श्राउनो उदय, श्रने श्राग्नी सत्ता, ए नांगो श्रायुबंध कालें अंतरमुहर्त प्रमाण मिथ्यात्वथी मामीने अप्रमत्तगुणगणा लगे जाणवो. तथा सातनो बंध, आग्नो उदय अने बानी सत्ता,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org