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________________ ७३० सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ तथा एक वेदनीयकर्मनो बंध, अगीश्रारमे, बारमे अने तेरमे गुणगणे होय, अहींयां पण जघन्य तो पूर्वली परें एक समय लगें होय. अहीं अगीआरमुं गुणगणुं एक समय लगें स्पर्शी, नवदये मरण पामे, तेनी अपेक्षायें एक समय लेवं. अने उत्कृष्टुं तो देशे जणी पूर्वकोटी वर्ष प्रमाण, एक वेदनीयनो बंध होय. केमके कोशएक जीव पूर्वकोटी आयुष्यनो धणी सात महीना माताना उदर मांहे रहीने शीघ्र जन्मे; जन्मथकी आठ वर्षने अंतें चारित्र खेश, रूपकश्रेणीयें चढी, केवलज्ञान पामे. तिहां एकज वेदनीय कर्मनी प्रकृतिना बंधस्थानके देशे जणी पूर्वकोटी वर्ष पर्यंत रहे, ते अपेक्षायें ले. __ हवे कयु कयुं कर्म बांधतां कयां कयां बंधस्थानक होय ? ते कहे . अहीश्रा नाष्यनी गाथा लखीये बैयें “आजमि माहे 5, सत्त एक सग थवा तश्ए ॥ बद्यतयंमि बद्यंति, सेसएसुब सत्त 5॥१॥" आयुःकर्म बांधतां एक श्राप कर्मर्नु बंध स्थानक होय, अने मोहनीय कर्म बांधतां एक आउनु, बीजं सातनुं, ए बे बंध. स्थानक होय. त्रीजुं वेदनीय कर्म बांधतां श्राप, सात, ब अने एक, ए चार बंधस्थानक होय. शेष ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, नाम, गोत्र अने अंतराय, ए पांच कर्मना बंधे श्राप, सात अने ब, ए त्रण बंधस्थानक होय. हवे जदयस्थानक त्रण कहे . श्राप, सात अने चार, ए त्रण उदय स्थानकडे. तिहां सर्व आठे कर्मने उदय पहेलु श्राग्नुं उदय स्थानक होय. ए अजव्यनी अपेदायें अनादिअनंत नांगे लेवं, अने नव्यनी अपेक्षायें अनादि सांत नांगे ले. तथा कोश्एक जीव, उपशमश्रेणी चढी तिहां मोहनीय विनां सात कर्मनुं उदयस्थानक स्पर्शी, वली तिहाथी पमतो आउनुं जदयस्थानक स्पर्श, तेनी अपेक्षायें सादि सांत नांगें ले. ए जघन्य तो अंतरमुहूर्त काल प्रमाण जाणवो. केमके को. एक जीव, वली मुहूर्तांतरें श्रेणी पमिवजे, तेनी अपेक्षायें लेवू. तथा उत्कृष्टो तो देशें कणो अर्ड पुजल परावर्त काल जाणवो, जे नणी उत्कृष्टथी फरी उपशमश्रेणी पनिवजवानुं एटझुंज अंतर बे, केम के सम्यक्त्व पाम्या पड़ी संसारमाहे रहेवानो उत्कृष्टो काल एटलोज होय, तेटला काल पर्यंत श्रावनो उदय होय, तथा मोह विना सात कर्मनुं बीजं उदय स्थानक, ते अगीआरमे गुणगणेज होय. ते जघन्यथी तो एक समय लगें होय, जे जणी कोइएक जीव, एक समय मात्र अगीश्रारमुं गुणगणुं स्पीने मरण पामे, तेनी अपेक्षायें जाणवं. अने उत्कृष्ट तो अंतरमुहर्त पर्यंत रहे. केम के अगीआरमा अने बारमा गुणगणानो काल एटलोज डे, अने तिहांज . ए सात प्रकृतिनुं उदय स्थानक पण होय. तथा चार घातीयां कर्म क्षय कस्या पली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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