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________________ ए सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ । यापेक्षायें आठ, सात अनेचार, एत्रण प्रकृतिस्थानक होय, अने सत्तानी अपेक्षायें पण श्राप, सात अने चार, ए त्रज प्रकृतिस्थानक हाय. तिहां जेवारें जीव सर्व कर्म बांधे, तेवारें आठ प्रकृतिनुं बंधस्थानक होय, ते जघन्य तथा उत्कृष्ट अंतरमुहूर्त रहे, केम के आयु बांधतां थकां जीवने ए बंधस्थानक होय अने आयुनो बंधकाल तो निरंतरपणे जघन्य तथा उत्कृष्टो अंतरमुहर्त्तज होय, तेथी ए बंधस्थानकनो काल पण अंतरमुहूर्त्तनो जाणवो. हवे ते माहेश्री जेवारें जीव, श्रायु न बांधे, तेवारें सात प्रकृतिना बंधस्थानके होय, तेनुं कालमान पण जघन्यथकी तो अंतरमुहूर्त प्रमाण जाणवू. कारण के कोइएक अंतरमुहूर्त्तायुवालो जीव, पोताना आयुष्यनो त्रीजो नाग थाकतो रहे, तेवारें परनवायुनो बंध करे, माटें तिहां आठ प्रकृतिनो बंध करी वली सात प्रकृतिना बंधस्थानके आव्यो, तिहां वली कांइएक न्यून अंतरमुहूर्त्तना त्रीजा लाग पर्यंत सात प्रकृतिनो बंध करतो, सात प्रकृतिना बंधस्थानके रही, वली मरण पामी अंतरमुहूर्त्तायुपणे श्रवतस्यो, तिहां पण ते आयुना बे नाग पर्यंत सात प्रकृतिनो बंध करे, पनी त्रीजा नागने धुरे श्रायु बांधे, तेवारें आठ प्रकृतिना बंधस्थानकें श्रावे. एम अंतरमुहर्त्तनो जघन्य काल कह्यो, अने उत्कृष्टो तो तेत्रीश सागरोपम उम्मासे ऊणा ते वली अंतरमुहूर्तोन पूर्वकोटी वर्षना त्रीजा नागें अधिक एटलो काल होय, ते आवी रीतें.-कोशएक जीव, पूर्वकोटी श्रायुवालो पोताना श्रायुष्यनो त्रीजो नाग थाकते अंतरमुहर्त पर्यंत तेत्रीश सागरोपम देवायुनो बंध करे, तिहां श्राप प्रकृतिना बंधस्थानें रही, वलतो पूर्वकोमीनो त्रीजो नाग, अंतर मुहूर्ते ऊणो रहे, त्यां लगे सात प्रकृतिना बंधस्थानकें रही, तिहांथी चवी, देवता थाय. तिहां पण तेत्रीश सागरोपम उम्मासे ऊणा एटला काल पर्यंत तो सात प्रकृतिनो बंध करे. शेष बम्मास आयु विशेष रहे, तेवारें वली परजवायु बांधे. तिहां आठ प्रकृतिना बंधस्थानकें थावे, ते नणी उत्कृष्टथी एटलो काल संजवे बे. अने जेवारें मोहनीय श्रने श्रायु विना बाकी । प्रकृतिनो बंध सूक्ष्मसंपरायनामा दशमे गुणगणे करे, तेवार ते बंध जघन्य तो एक समय लगें होय. ते केम के कोशएक जीव, उपशमश्रेणी करी दशभु गुणगणुं एक समय लगें स्पर्शी, तिहां जवक्षयें दशमे गुणगणेज मरण पामीने अनुत्तर देव थाय, तिहां वली अविरति सम्यदृष्टिपणे सात प्रकृतिनो बंधक होय, ते अपेदायें जघन्य एक समय श्रने उत्कृष्ट तो अंतरमुहूर्त काल प्रमाण होय, ते केमके दशमा गुणगणानुं उत्कृष्ट एटर्बुज कालमान . तिहां प्रकृतिनोज बंध होय, ते अपेक्षायें लेवू. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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