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________________ शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ तेवारे ते नाग मिठ के मिथ्यात्वमोहनीयमांहे घालीने खपावे, जेम अनिये अर्द्ध बलेलो इंधण त्रीजुं इंधण पामी बेहु बले. एम क्षपण पण तीव्र परिणामे करी ते दल अस्प प्रकृतिमाहे संक्रमावी, बेहुने खपावे. वली मिथ्यात्वनुं शेष दल रहे ते मीस के० मिश्रमोहनीयमां घाली खपावे अने मिश्रमोहनीय, शेष दल रहे, ते सम्यक्त्वमोहनीयमां घाली खपावे.सम्मं के सम्यक्त्वमोहनीयनो लोग्वंम उकेरीने दपककृत करणाझायें वर्ततोजो पूर्वबझायु तिहां मरण पामे, तो अपतित परिणामें देवगति पामे, अने पतितपरिणामें चारे गतिमांदे अवतरे.तिहां ते गतिमध्ये सम्यक्त्वमोहनीय खपावी तेना चरमग्रासें एक समय वेदक सम्यक्त्व लहीने, सर्व सम्यक्त्वमोहनीयने खपावी दायिक सम्यक्त्व लहे, एम दर्शनमोहनीय क्षपणानो आरंजक मनुष्य, क्षपणानी पूर्णता तो चारे गतिमध्ये करे, ते माटें दायिकसम्यक्त्वनो लाज, चारे गतिमध्ये संजवे, तथा बझायुवालाने ए सात प्रकृति खपावी रह्या पनी जो आयु शेष रहे, तो तिहां चारित्रमोहनीयने क्षपणा करनारी श्रेणी न करे, श्रने अबघायु तो चारित्रमोहनीयनी संपूर्ण क्षपणा करीने केवलज्ञान पामे. चारित्रमोहनीयनी क्षपणा मांमतो प्रथम तिबाउ के नरकायु, तिर्यगायु श्रने देवायु, ए त्रण आयु खपावे. अहीं जो पण त्रण श्रायुनी सत्ता नथी, तो पण संजव सत्तानी अपेदायें दपणा कही. जे जणी जेणे पोतपोताना चरमनवने प्रांतें आपापणुं आयु खपावी, मनुष्यजव लही दर्शनमोहनीयनी क्षपणा करी, शेष त्रण नवना थायुनी बंधयोग्यता मटामी , तेहीज चारित्रमोहनीयनी कपणा श्रारंने. ते अपेक्षायें क्षपणा कही, शेष एक मनुष्यायुज उदय तथा सत्तायें वर्ने बे. तेवार पड़ी अपूर्वकरणनामा श्रावमुं गुणगणुं दपणाने अर्थे करी नवमा अनिवृत्ति गुणगणाना नव नाग करी तेने बीजे नागें ग के एकेंपियजाति, विगल के विकलेंजियजाति त्रण, एवं जाति चार तथा श्रीणतिग के० थीणहीत्रिक, उजोडं के उद्योतनाम कर्म, तिरिनिरयथावरफुगं के० तिर्यंचछिक, नरकछिक, थावर अने सूक्ष्म, ए स्थावरहिक, साहारायव के साधारण नाम, श्रातपनाम, ए शोल प्रकृति खपावे. कोशएक आचार्य कहे जे के ए शोल प्रकृति खपावतो वच्चे अम के० अप्रत्याख्यानीय तथा प्रत्याख्यानीय आठ कषाय खपावीने पबी ए शोल प्रकृति खपावे, अने को एकत्राचार्य कहे जे के, ए शोल प्रकृति खपाव्या पली त्रीजे नागें था प्रकृति खपावे, ते पड़ी नपुंसिबी के नपुंसकवेद दय करे, ते पड़ी स्त्रीवेद क्षय करे. ॥एए॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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