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________________ शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ १ उपशमावे. तथा नपुंसकवेदें श्रेणी आरंजी होय तो प्रथम स्त्रीवेद, पढी पुरुषवेद, पी हास्यादि षट्क ने पढी नपुंसकवेद उपशमावे. ते पी दोदोएगं तिरिएस रिसेसरिसंडवसमेइ के० अप्रत्याख्यानावरण क्रोध अने प्रत्याख्यानावरण क्रोध, ए बेहु उपशमावे, ते पछी संज्वलनक्रोध उपशमावे, ते पी श्रप्रत्याख्यानावरण मान छाने प्रत्याख्यानावरणं मान, ए बेहु उपशमावे, ते पढी संज्वलन मान उपशमावे, ते पढी अप्रत्याख्यानावरण माया छाने प्रत्याख्यानावरण माया, ए बेहु उपशमावे, ते पछी संज्वलन माया उपशमावे, ते पढी श्रप्रत्याख्यानावरण लोन ने प्रत्याख्यानावरणा लोन उपशमावे, एटले बादर संपरायनामा नवमुं गुणस्थानक पूर्ण थाय. पढी दशमा सूक्ष्म संपरायनामा गुणस्थानके रह्यो, सूक्ष्म संज्वलन लोने स्तिबुक संक्रम प्रकारें उपशमावीने उपशांतमोही थाय, तिहांथी जवहयें पकतो अनुत्तर सुर थाय, जे जणी अबद्धायु तथा बद्ध सुरायुवालो उपशमश्रेणी करे बे. तेमध्यें वायु वालो तो मरण पामे नहीं, अने बद्धायुवालो जो मरे, तो धनुत्तर देव थाय, तिहां गीखारमाथी चोथे गुणठाणे यावे, तिहां सर्व करण समकालें प्रवर्त्ता, अने कालक्षयें पडे तो जिहां चढतां जे बंधादिकनो विछेद कीधो हतो, तिहां हिां वली ते बंधादिक प्रगट करतो जाय, तथा रूपकश्रेणीथी उपशमश्रेणीनी मंद विशुद्ध बे, ते जणी अपूर्वबंध बमणो बमणो करे. सूक्ष्म संपरायना चरम समयें नाम तथा गोत्र कर्मना शोल मुहूर्त्तनो बंध करे, वेदनीयनो चोवीश मुहूर्त्तनो बंध करे, अने ज्ञानावरणादिकनो बे बे मुहूर्त्तनो बंध करे. एम चढतां तथा उतरतां सर्व स्थानें मण मण बंध करे. एम उपशमनावीधि तथा विसंयोजना विधि, सर्वसत्तरी नामा बड़ा कर्मग्रंथना बालावबोध थकी जाणवो, तथा कर्मप्रकृतिनी टीकाथी सविस्तर जावो. ॥ ए८ ॥ ॥ श्रथ रूपकश्रेणीमाह || हवे रूपकश्रेणीनो विधि कडे. ॥ मित्र मीस सम्मं, तियान इग विगल थी। तिगुजो ॥ तिरि निरय थावर डुगं, सादारायव प्रड नपुंसि बी ॥ एए ॥ अर्थ-तिहां रूपक श्रेणीनुं प्रारंजक संख्याता वर्षायुवाली कर्मभूमि जात मनुष्य प्रथम संघयणी अत्यंत विशुद्धमान परिणामी, अविरति, देश विरति, प्रमत्ताने श्रप्रम 'तादिक गुणठाणे वर्त्ततो जो पूर्वधर होय, तो शुक्लध्यानें वर्त्ततो होय, अने बीजो होय तो विशुद्ध धर्मध्यानें वर्त्ततो प्रथम अण के० चार अनंतानुबंधी या कषायनी क्षपणा आरंजे, तेने त्रण करणें करी खपावतां, खपावतां जेवारें अनंतमो जाम शेष रहे, Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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