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शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५
होय, तथा एकत्री प्रकृतिना बंधस्थानकें प्रकृतिजागनी बहुलतायें अल्पदल लाने. एम चोपन्न प्रकृतिना उत्कृष्ट प्रदेश बंध स्वामी कह्या.
तेथकी सेसा के० शेष रही जे बोराह प्रकृति तेना उक्कोसपएसगा के० उत्कृष्ट प्रदेश बंध खामी मिठो के० मिथ्यात्वी जीव पंचेंद्रिय पर्याप्तो उत्कृष्ट योगी सात कर्म बाँधतो बे समय लगें होय, जेजणी ३ नरकत्रिक, ७ जाति चार, ११ स्थावरचतुष्क, १२ हुंमसंस्थान, १३ बेवहुं संघयण, १४ आतप, १५ नपुंसक वेद, १६ मिथ्यात्व, २० अनंतानुबंधीय कषाय चार, २४ मध्यसंघयण चार, २० मध्यसंस्थान चार, ३१ दौर्भाग्यत्रिक, ३४ थीएसी त्रिक, ३७ तिर्यंचत्रिक, ३८ स्त्रीवेद, ३० उद्योत, ४० कुखगति, ४१ नीचैर्गोत्र, ए एकतालीश प्रकृति मध्यें शोल प्रकृतिनो बंध मिथ्यात्व प्रत्यय नेपच्ची प्रकृतिनो बंध अनंतानुबंधी प्रत्ययि बे, ते मिश्रादिक गुणन बंधायाने साखादन गुणठाणे उत्कृष्ट योगने जावें उत्कृष्ट प्रदेश बंध न होय, तेजी एनो स्वामी मिथ्यात्वीज कह्यो.
तथा शेष पच्चीश प्रकृतिनो बंध, जो पण सम्यक्त्वादिक गुणठाणे बे, तो पण १ श्रदारिक, २ तैजस, ३ कार्मण, ७ वर्णचतुष्क, ८ अगुरुलघु, ए उपघात, १० बादर, ११ प्रत्येक, १२ स्थिर, १३ अशुभ, १४ अयश, १५ निर्माण, ए पंदर प्रकृतिनो उत्कृष्ट प्रदेशबंध अपर्याप्ता एकेंद्रिय प्रायोग्य नामकर्मनी त्रेवीश प्रकृति बांधतो थको मिथ्यात्वी जीव करे, जे जणी ४ स्थावरचतुष्क, ५ एकेंद्रियजाति, ६ हुंग संस्थान, तिर्यंचक ने पूर्वली पंदर, एवं त्रेवीश बांधता होय, ते करे, तथा पच्चीशादिकने बंधे जाग बाहुल्य यावे माटे अल्प दल लाने.
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तथा मनुष्य द्विक, पंचेंद्रियजाति, चौदारिक उपांग, पराघात, उश्वास, त्रस, पर्याप्त, स्थिर अशुभ, ए दश प्रकृतिनो मिथ्यात्वें पच्चीश नाम कर्मनी प्रकृति पर्याप्त स प्रायोग्य बांधतो उत्कृष्ट प्रदेश बंध करे, तेथी ए बाशठ प्रकृतिना उत्कृष्ट प्रदेशबंध स्वामी मिथ्यात्वी कह्या. एम उत्कृष्ट प्रदेशबंध स्वामी कह्या ॥ इति० ॥ ए ॥
दवे जघन्य प्रदेशबंध स्वामी कह्या थकी वचला सर्व मध्यम प्रदेशबंध स्वामी . सुखें समजाय ते जणी एकसो ने वीश प्रकृतिना जघन्य प्रदेशबंध स्वामी कहे बे. ॥ अथ जघन्य प्रदेशबंधस्वामी नाह ॥
सुमुणी डुनि प्रसन्नी, नरय तिग सुराज सुर विजवि डुगं ॥ सम्मो जिणो जदन्नं, सुदुम निगो आइखणि सेसा ॥ ९३ ॥
अर्थ - तिहां सन्नी अपर्याप्तो आपणी प्रकृतिना बंधकमांदे घणी प्रकृति बांधतो जघन्य योगें वर्त्ततो चार समय लगें रहे, एटले जघन्य योगें उत्कृष्टो तो
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