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संग्रहणीसूत्र. अने शोजा बे, तथा मुखनी अधिक कांती ने तथा नानाप्रकारनां श्राजरण तथा नूषण धारण करनारा, एवा पुरुषा, सत्पुरुषा, माहापुरुषा, पुरुषवृषना, पुरुषोत्तमा, अतिपुरुषा, महादेवा, मरुता, मेरुप्रना अने यशस्वंत-ए दश नेद किंपुरुष देवोना बे.
तथा जेमनो वेग अत्यंत बे, जेमनुं सौम्य दर्शन डे, अने जे महोटा शरीरवाला, वली स्कंध अने ग्रीवा ए बंने जेमनां विस्तारवंत अने पुष्ट डे, तथा विचित्र प्रकारनां श्रानरण अने नूषण जे जेमनां, एवा जुयंगा, जोगशालिन, महाकाया, अतिकाया, स्कंधसाखिनः, मनोरमा, महावेगा, महेश्वदा, मेरुकांता अने नास्वंत-ए दश प्रकारना महोरग देवो बे.
तथा प्रिय ले दर्शन जेमन, वली स्वरूपवंत नलो ने मुखाकार जेमनो, तथा नलोडे खर जेमनो, वली मस्तकनेविषे मुकुटने धारण करनारा, तथा हार ने नूषण जेमने, एवा हाहाः, हुहु, तुंबुरव, नारदा, शषिवादका, नूतवादका, कादंबा, महाकादंबा, रैवता, विश्वावसव, गीतरति, अने गीतयश-ए बार प्रकारना गंधर्व देवो . ए रीते आठ व्यंतर निकायना एकेका निकायनेविषे दाहिण उत्तर के दक्षिण अने उत्तरश्रेणिना नेया के नेदे करीने तेसिं के तेना सोलसकंदा के सोल इंडो बे; ते श्मे के० ए आगली बे गाथाए करी कहे . ॥ ३४ ॥
कालेय महाकाले ॥ मुरूव पडिरूव पुन्न नद्देय ॥ तद चेव माणिनद्दे ॥नीमेय तहा मदानीने ॥ ३५ ॥ किंनर किंपुरिसे सप्पुरिसा ॥ महापुरिस तहय अश्काए ॥ महाकाय
गीयरई॥गीयजसे उन्नि उन्नि कमा ॥३६ ॥ अर्थ- पहेला पिशाच नामा व्यंतरनिकायने दक्षिण दिशिए कालेंज अने उत्तर दिशिए महाकालेंज, ए अनुक्रमे नूतनिकायने स्वरूपेंड, प्रतिरूपेंड. जदनिकायने पूर्णना तथा माणिजम, राक्षसनिकायने नीमें, महानी में ॥ ३५ ॥ किंनरनिकायने किंनरेंड, किंपुरुष तथा किंपुरिषनिकायने सत्पुरुषे अने महापुरुष, महोरग. निकायने अतिकाय, तथा महाकाय. गंधर्वने गीतरति श्रने गीतयश. ए रीते आठ निकायने मुन्नि मुन्निकमा के बे बे इंछ , ते अहींयां अनुक्रमे कहेवा. ॥ ३६ ॥ ॥ हवे ए पिशाचादिक आठनिकायना देवोनी ध्वजाने विषे चिन्ह होय जे ते कहे .॥
चिंधं कलंब सुलसे ॥वड खडगे असोग चंपयए ॥ ना
गे तुंबरुअ नए ॥ खटंग विवजिया रुका ॥ ३७॥ अर्थ-पिशाचने कदंबवृदनुं चिन्ह, नूतने सुलसे के सुलसवृदनु चिन्ह, यदने
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