SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संग्रहणीसूत्र. अर्थ- ते के ते व्यंतरिक देवोनां नगर जे गुरु के मोहोटां डे, ते जंबुदीव के जंबुद्धीप जेटलां बराबर एक लाख योजन गोल, चूमीने श्राकारे बे. तथा जे जहन्न के जघन्य डे, ते जारह के जरतक्षेत्र जेवडा (५२६) योजन अने एक योजनना उंगणीया बन्नाग उपर डे, अने जे मजिमगा के मध्यम वन डे ते, विदेह के महाविदेहदेवप्रमाण ( ३३६०४ ) योजन अने एक योजनना जंगणीया चारजाग ज. पर एटलां महोटां बे. हवे ते नगर निवासी वंतर के व्यंतरदेवोना पुण के० वली अहविहा के आठ प्रकार बे. ते कहे . एक पिसाय के पिशाच, बीजा नूया के नूत, तहा के तेमज त्रीजा जरका के जद, ॥ ३३ ॥ चोथा रावस, पांचमा किंनर, बहा किंपुरुष, सातमा मदोरग, आठमा गंधर्व, हवे ए आठेना प्रतिन्नेद कहे. त्यां खनावे प्रचुरपणे करीने स्वरूपवान तथा सोम्य दर्शन जेमचं, तथा हस्त अने ग्रीवाने विषे रत्नमय आजूषण धारण करनारा एवा कुष्मांमा, पटका, जोषा, श्रान्हिका, काला, महाकाला, चोदा, अचोक्षा, ताल पिशाचा, मुखरपिशाचा, अधस्तारका, देहा, महादेहा, तूदनीका, अने वनपिशाचा, ए पन्नर प्रकारना पिशाच देवो बे. तथा स्वरूपवंत सौम्य मुखवाला अने विविध प्रकारच् डे विलेपन जेमने, एवा खरूपा, प्रतिरूपा, थतिरूपा, नूतोत्तमा, स्कंदिका, महास्कंदिका, महावेगा, प्रतिबत्रा, अने आकाशगा, ए नव प्रकारना नूतदेवो बे. तथा खनावे गंजीर अने जेमनं दर्शन प्रिय बे, तथा विशेषे करी मान तथा उ. न्माननुं जे प्रमाण- तेणे करी सहित. वली हाथ, अने पगनां तलियां तथा नख, तालु, जीज, होठ, एटलां वानां जेमनां लाल ,अने देदीप्यमान मुकुटना धरनार तथा नानाप्रकारनां श्राजूषणो ने जेमनां, एवा पूर्णजना, माणिना, स्वेतजमा, हरिजना, सुमनोना, व्यतिपाकनडा, सुजा, सर्वतोनमा, मनुष्यपदा, धनाधिपतयो, धनाहारा, रूपयदा अने यदोत्तमा, ए तेर नेद यददेवोना डे. तथा खनावे जयंकर अने जेमनुं दर्शन पण जयंकर तथा विकराल अने रक्त, तथा लांबा होठवाला, तपनीय आन्नूषणवाला, नानाप्रकारनां विलेपन करनार, एवा जीमा, महानीमा, विघ्ना, विनायका, जलराक्षसा, राक्षसराक्षसा, अने ब्रह्मराक्षसा, ए सात प्रकारना राक्षस देवो बे. तथा जेमनुं दर्शन सौम्य बे, तथा जेमना मुखने विषे अधिक रूप अने शोजा बे, तथा मस्तकने विषे मुकुट डे बाजूषण जेमने, एवा किंनरा, किंपुरुषा, किंपुरुषोत्तमा, हृदयंगमा, रूपशालिनः, अनिंदिता, किंनरोत्तमा, मनोरमा, रतिप्रिया अने रतिश्रेष्ठा, ए दश प्रकारना किन्नर देवो . तथा जेमना साथल श्रने नुजाउने विषे अधिक रूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy