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________________ ४६ संग्रहणोसूत्र. __ अर्थ-रयणाए के रत्नप्रजा पृथ्वीनापिंड माहेला पढम के० पदेला उपरना जोयणसहस्से के० हजार योजन जे मूक्या बे, तेमांथी हिहुवरिसयसय विहूणा के हेलिना अने उपरना सो सो योजन मूकीए,एटले सो योजन नीचे मूकीए भने सो योजन उपर मूकीए, वचमांना आठसे योजन रह्या; तेमां वंतरियाणंरम्मा के व्यंतरदेवोनां घर ते घणां रमणिक मनोहर जोवायोग्य बे. जोमा के पृथ्वीकायसंबंधी नयरा के नगर, ते असं रिकद्या के असंख्याता बे. अने बीजा मनुष्यदेवथी बाहेर असंख्याते हीपसमुझे जे व्यंतरदेवोनां नगर जे; तेनी वक्तव्यता जीवानिगमादि सूत्रथकी जाणवी ॥ ३० ॥ ॥ हवे व्यंतरोना घरना श्राकार कहे . ॥ बाहिं वहा अंतो ॥ चरंस अदो कमियायारा ॥नव ण वईणं तह वंतराण ॥ इंद जवणा नायवा ॥३१॥ अर्थ-ते घरोनो बाहिं के बाहेरनो नाग ते वहा के वृताकारे बे, अने अंतो के। मांहेलीकोरे चउरंस के चोखूणा बे. तथा अहो के श्रधोनागे एटले हेठे कनियाकारा के कमलनी कर्णिकाने श्राकारे , एवा आकारे नवणवईणं के जुवनपति, तह के तेमज वंतराण के० व्यंतरिक देवोनांजवणार्ड के जुवन ते नायबा के जाणवां॥३१ तहिं देवा वंतरिया ॥ वर तरुणी गीय वाश्य खेणं ॥ निच्चं सुदिया पमुश्या ॥ गयंपि कालं नयाणंति ॥ ३२ ॥ अर्थ- तहिं के ते जुवनोमांहे देवावंतरिया के व्यंतरिक देवता जे बे, ते वर के प्रधान एटले नली सोनाग्यवंति सुहामणी, अतिसुंदर, कुसुमलता समान डे सुगंध जेहनी, एवी देदीप्यमान तरुणी के० देवी, ते मनने प्रियकारी एहवा मधुर वचनेकरी गीय के गीत गाय , तथा बत्रीशवक नाटकनी रचनाए मृदंगादिक पटहनेर एहवा वाश्य के वाजिन वगाडे बे. तेहना खेणं के शब्दे करीने ते देवता निच्चंसुहिया के निरंतर सुखीया बे. तथा पमुश्या के प्रमुदित एटले हर्षवान् थका पोताना आयुष्यनो गयंपिकालं के जे गयो काल ते पण नयाणंति के० नयी जाणता. ॥ ३२॥ ॥ हवे ते व्यंतर देवोना नगरोनुं प्रमाण तथा निकायनां नाम कहे .॥ ते जंबुदीव नारद ॥ विदेह सम गुरु जहन्न मझिमगा॥ वंतर पुण अविदा ॥पिसाय नूया तहा जरका ॥ ३३ ॥रकस किंनर किंपुरिसा ॥ मदोरगा अह माय गंधवा ॥ दादिण उत्तर नेया ॥ सोलस तेसिं श्मे इंदा ॥ ३४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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