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संग्रहणीसूत्र.
પ્રય वर्णे ले. अने विज के० विद्युत्कुमार, सिहि के अग्निकुमार, दीव के छीपकुमार, ए ऋणनां शरीर अरुणा के राते वणे , अने वान के वायुकुमारनी पियंगु के० प्रियंगु वृदना वर्णनीपरे नीले वरणे निता के कांति बे. ॥२७॥
॥ हवे असुरकुमारादिकनां वस्त्रोनो वर्ण कहे बे. ॥ असुराण वन रत्ता ॥ नागोददि विमु दीवसिदि नीला॥
दिसि थणिय सुवन्नाणं ॥धवला वाजण संकरुई॥२॥ अर्थ-असुराण के असुर कुमारनां वन के० वस्त्र ते रत्ता के० रातांबे, अने नागोदहि के नागकुमार, उदधिकुमार तथा विकु के विद्युत्कुमार, दीव के छोपकुमार, सिहि के अग्निकुमार, ए पांचेने नीलां के नीलां वस्त्र बे. वली दिसि के० दिशिकुमार, थणिय के० स्तनितकुमार, सुवन्नाणं के सुपर्णकुमार ए त्रणेनां वस्त्र ते धवला के उज्वल . तथा वाजण के वायुकुमारने संसरुई के संध्याराग सदृश वस्त्र . ॥ २ ॥ ॥ हवे ए नुवनपत्यादिक दशे निकायना सोना जे सामानिक देवो एटले इंश सरखी धिना धणी, तेनी संख्या, तथा इंझोना शरीरनी रदा
करनार एवा जे आत्मरक्षक देवो ,तेनी संख्या कहे .॥ चनसहि सहि असुरे॥ बच सहस्साई धरणमाईणं॥
सामाणिया इमेसि ॥ चनग्गुणा आयरकाय ॥२॥ अर्थ-असुरे के० असुरकुमारनिकायना बे इंजे तेमांहे पहेला चमरेंसने चउसहि के चोसठ हजार, अने बीजा बलिंडने सहि के साठ हजार, अने बाकीना धरणमाईणं के धरणे आदेदेश्ने जे नुवनपतिना अढार इंज; तेमांना एकेकाने प्रत्येके बच्चसहस्साई के० हजार सामाणिया के सामानिक देवो , अने ते एकेका इंजना सामानिक देवो थकी चजग्गुणा के चारगुणा करीए तेटला एकेकाना थायरकाय के० अंगरदक देवो जाणवा ॥ ए॥ ए रीते ए दशे जुवनपतिनां नाम' दक्षिणेंड, उत्तरेंज, दक्षिणनुवनसंख्या, उत्तरजुवनसंख्या, चिन्ह ते लक्षण, देहवर्ण, वस्त्रवर्ण, दक्षिण सामानिकदेव, उत्तर सामानिक देव, दक्षिण आत्मरक्षक देव, तथा उत्तरदिशि आत्मरक्षकदेव कह्या. ॥ हवे व्यंतरदेवोनी वक्तव्यता कहेतो थको तेमां प्रथम व्यंतरदेवोनां नुवन कहे .॥
रयणाए पढम जोयण ॥ सहस्से दिवरि सय सय विणे ॥ वंतरियाणं रम्मा ॥नोमा नगरा असंखिझा ॥ ३० ॥
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