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________________ . ६०२ शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. 4 - गणे श्रावी वली बीजी वखत चडतो सर्वे गुणवाणां स्पर्श, तेवारें अंतरमुहूर्त्तनुं -यांतरुं नाव. तथा बीजे प्रकारें पण जे मतें एक नवें एकज श्रेणी करे, तिहां चडतां तथा पकतां पण एज श्रांतरं जाववुं. अने की मोह, सयोगी तथा योगी, ए त्रण गुंण्ठापाथी पडवुं नथी, ए गुणवाणां एकज वार श्रावे, माटें एनुं जघन्य तथा उत्कृष्ट प्रांतरुं नथी. हवे ए गुणापानुं गुरु के० उत्कृष्ट प्रांत कहे बे. तिहां मिaि के० मिथ्यात्व गुणानुं बेबसी के० वे वखत बाराह सागरोपम पूर्वकोटी पृथक्त्वें अधिक एटलुं उत्कृष्ट आंतरं जाणवुं, जे जणी कोइएक पूर्व कोट्यायु मनुष्य शुद्धसंयम पाली विजय विमानें तेन्रीश सागरोपमायु जोगवी सम्यक्त्व सहित मनुष्यजव पामी वली मनुष्य जवथी विजय विमानें जाय. एम बाराह सागरोपम सम्यक्त्वें रही वली अंतरमुहूर्त्त मिश्र श्रावी फरी सम्यक्त्व लही त्रण वेला अच्युतगमनें मनुष्य जवांतरें बाराह सागरोपम पूरें, एम एकसो ने बत्रीश सागरोपम पूर्वकोटी पृथक्त्वें अधिक मिथ्यात्व गुणगणानुं प्रांतरुं उत्कृष्टुं जाणवुं. ए मिथ्यात्व विना इयरगुणे के० इतर जे बीजा साखादनथी उपशांतमोह पर्यंत दश गुणवाणां बे, तेनुं उत्कृष्ट प्रांत पुग्गलऊंतो के सूक्ष्म क्षेत्र पुल परावर्त्तनुं अर्द्ध कांइएक ऊणेरुं होय, जे जणी उत्कृष्टो किंचिडून अर्द्ध पुल परावर्त्त प्रमाण शेष संसार ढुंते थके जीव, ग्रंथिनेद करे, तेवार पी ए दश गुणवाणां स्पर्शे, तेणे उत्सूत्र जाषणादिक अत्यंत अशातनायें करी अनंत संसार वधारे तो पण जेणे सम्यक्त्व लघुं ते जीव अर्द्ध पुजल परावर्त्तमांहे सीजे, तेवारें वली सर्व गुणठाणां स्पर्शे, ए अपेक्षायें जाववुं, उपरांत संसारमां न रहे ॥ ८४ ॥ हवे पुल परावर्त्तनुं कालमान समजाववाने प्रथम कालमानना नेद कड़े बे. तिहां त्रीश मुहूर्ते एक अहोरात्र अने त्रीश अहोरात्र एक मास, बे मासें एक ऋतु, त्रण तुर्ये एक छायन, बे छायने (१) एक वर्ष, चोराशी लाख वर्षे (२) एक पूर्वांग चोराशी लाख वागें (३) एक पूर्व, चोराशी लक्ष् पूर्वे (४) एक त्रुटितांग, चोराशी लक्ष् त्रुटितांगे (५) एक त्रुटित, चोराशी लक त्रुटितें (६) एक अटटांग, चोराशी लक अटटांगें (i) एक टट, चोराशी लक्ष दें (८) एक अववांग, चोराशी लक्ष् वांगें (ए) एक अवव, चोराशी लक्ष् अववें (१०) एक हूहूआंग, चोराशी लक्ष् हूहूआंगें (११) एक हूहू, चोराशी लक हूहूएं (१२) एक उत्पलांग, चोराशी लक्ष् उत्पलांगें (१३) एक उत्पल, चोराशी लक्ष् उत्पलें (१४) एक पद्मांग, चोराशी लक्ष् पद्मांगें (१५) एक पद्म, चोराशी लक्ष् पद्मे (१६) एक नलिनांग, चोराशी लक्ष् नलिनांगें ( ११ ) एक नलिन, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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