________________
शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५
६नए दलिक असंख्यातगुणी निर्जराहेतु चारित्रमोहनीय उपशमावतो अपूर्वकरण अनिवृत्तिकरण गुणगणे गुणश्रेणी करे, ते बही गुणश्रेणी जाणवी. ___ तेथकी अनंतगुणविशुद्धियें उपशांतमोह प्रत्ययिकी संख्यातगुण हीन मुहूर्ते वे. दवा योग्य असंख्यातगुण वृद्धिदलिक उपशांतमोह गुणश्रेणी सातमी. ___ तेथकी अनंतगुणविशुछियें संख्यातगुण हीन मुहूर्ते वेदवा योग्य असंख्यातगुण वृद्धिदलिक असंख्यातगुण निर्जरायें वधती चारित्रमोहनीय खपावतां श्रारमे अने दशमे गुणगणे दलिकरचना करे, ते आठमी गुणश्रेणी. ___ए तेथकी अत्यंत विशुद्ध संख्यातगुणहीन अंतरमुहूर्ते वेदवा योग्य असंख्यातगुण वृद्धिदलिक दीणमोह गुणगणा प्रत्ययिकी गुणश्रेणी नवमी जाणवी.
१० तेथकी संख्यातगुणहीन अंतरमुहर्ते वेदवा योग्य असंख्यातगुण वृद्धिदलिक सयोगी केवलीने असंख्यातगुणी निराहेतु दलिक रचना करे, ते दशमी.
११ तेथकी इतर अयोगी गुणगणे कर्म खपाववा निमित्त, सयोगी गुणश्रेणीना अंतरमुहूर्त थकी संख्यातगुण हीन अंतर मुहूर्ते वेदवा योग्य असंख्यातगुण वृद्धिदलिक कर्म दल रचना करे, ते अगीआरमी अयोगीकेवली गुणश्रेणी होय. एम अगीआर गुणश्रेणीनी रचनायें करी बहुकाल वेदवा योग्य कर्म ते अल्प काले निर्धारे॥श्त्यर्थः ॥७॥
॥हवे गुणश्रेणीनुं स्वरूप कहे .॥ गुणसेढी दल रयणा, णुसमय मुदया दसंख गुणणाए ॥
एअगुणा पुण कमसो, असंख गुण निकरा जीवा ॥ ३ ॥ अर्थ-गुणसेढी के० गुणश्रेणी ते दलरयणा के कर्मदलनी नोगवी वेदीने निर्जरा निमित्त, रचना स्थापना. अणुसमयमुदयादसंखगुणणाए के उदय समयथी मामीने समय समय असंख्यात गुणाकारें वधता दलनुं संक्रमावq एश्रगुणापुणकमसो के० ए गुणश्रेणीना वली अनुक्रमें एकेकथी चढता असंखगुण निराजीवा के० असंख्यात गुण निरावंत जीव होय. पहेली गुणश्रेणीथी बीजीना, बीजी गुणश्रेणीथी त्रीजी गुणश्रेणीना जीव चढतां चढतां वधती वधती निरावंत होय. एम सर्वत्र समजवं. ॥ इत्यक्षरार्थः॥ ' गुणाकारें कर्मदल वेदीने निर्जरा निमित्त कर्मदलनुं व्यवस्थायें स्थापवू, उपरली स्थिति थकी उतारी उतारी उदयावलिनी स्थितिना समय समय स्थितिने विषे असंख्यातगुण वधतुं संक्रमावतां जे दलश्रेणी, ते गुणश्रेणी कहीये. एम थोमे कालें घणां कर्मदल निओरे, तेना सुखावबोध निमित्त थापना करी देखामी . तिहां प्रथम गुणश्रेणीनो काल अपूर्वकरण अने अनिवृत्तिकरण काल थकी किंचि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org