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शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५
६५३ चारित्रमोहनीयना वली बार नाग करीये ते बंधाता अनंतानुबंधीया चार तथा थप्रत्याख्यानीथा चार श्रने प्रत्याख्यानीथा चार, एवं बार प्रकृतिने वहेंची थापीयें, अने शेष रह्या जे देशघाती रसवंत दल तेना बे नाग करी, कषाय तथा नोकपायमोहनीयने वहेंची आपीयें, तेमध्ये कषायनो नाग संज्वलना चारे प्रकृतिने थापीयें, अने नोकषायनो नाग एक वेद, एक युगल, जय श्रने जुगुप्सा, ए पांच प्रकृतिने वहेंची थापीयें, तथा आयुःकर्म एकज गति श्राश्रयी बंधाय, तेथी एनो जाग न वहेंचाय.
नामकर्मनो मूलनाग जे श्रावे, ते उगणत्रीश नागें वहेंचीयें, तेनां नाम कहे . १ गति, ५ जाति, ३ तनु, ४ उपांग, ५ बंधन, ६ संघयण, ७ संस्थान, ७ आनुपूर्वी, ए थी १५ वर्णचतुष्क, १३ अगुरुलघु, १४ उपघात, १५ जश्वास, १६ निर्माण, १७ जिननाम, १० आतप, १ए शुनाशुज विहायोगति, २० थी।ए त्रस दशक अथवा स्थावर दशक, ए गणत्रीश मध्ये जेटली बंधाती होय, तेटले नागें वहेंची, तेमध्ये पण तनु एटले शरीर नामकर्मनी प्रकृतिना त्रण अथवा चार जाग करीयें; तिहां वैक्रिय, आहारक, तैजस अने कार्मण बांधतां चार नाग करीये, तथा औदारिक, तैजस अने कार्मण अथवा वैक्रिय, तैजस थने कार्मण बांधतां त्रण त्रण नाग करीयें, तथा बंध. नना सात नाग तथा अगीवार नाग करीयें, तिहां मनुष्य श्रने तिर्यच प्रायोग्य बांधतां, औदारिकनां बंधन चार, अने तैजस कार्मणनां बंधन त्रण, एवं सात बंधाय, तेवारें सात नागें वहेंचीयें, तथा देवप्रायोग्य नामकर्मनी एकत्रीश प्रकृति बांधतां वैक्रियना बंधन चार, तथा श्राहारकनां बंधन चार अने तैजस कार्मणनां बंधन त्रण, एवं अगीवार बंधाय, तेवारें अगीबार नागें वहेंचीयें तथा वर्ण नामना पांच नाग, गंध नामना बे नाग, रस नामना पांच नाग, स्पर्श नामना श्राप नाग, एवं वीश नाग थाय, अने शेष प्रकृतिना नाग पत्र को थाय नहीं, जे जणी ते प्रकृति बंध विरोधिनी बे, एक बांधतां बीजी न बंधाय, जेम एक गति बांधतां शेष त्रण गति न बं. धाय. एमज जाति, संघयण तथा संस्थानादिक पण एकज बंधाय, तथा प्रसादिक दशक बांधतां स्थावरादिक दशकनी विरोधिनी प्रकृति न बंधाय. गोत्रकर्मनो पण नागी को नथी. एक समये उंच, नीच, ए बे माहेडं एकज गोत्र बंधाय, तथा अंतरायकर्मनो मूलनाग जे श्रावे, ते तेनी उत्तर प्रकृति पांचने जागे वहेंचीये. एम उत्तर प्रकृतिनी दलविनंजना कही.
बद्यंतीण विनय के जे प्रकृति बंधाती होय, ते पोतपोतानो प्रदेशदलिक जाग पामे अने बंध विच्छेदे तेनो नाग जे बीजी सजातीय प्रकृति बंधाती होय ते पामे; थने
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