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________________ ६६६ शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ अर्थ-तस के त्रस अने बादर, पर्याप्त अने प्रत्येक, ए सचतुष्क; वन्न के शुनवर्ण, शुनगंध, शुन्नरस श्रने शुनस्पर्श, ए वर्णचतुष्क; तेथचन के तैजस, कार्मण, श्रगुरुलघु अने निर्माण, ए तैजसचतुष्क; ए त्रण चतुष्क. मणु के मनुष्य छिक, खगश्ग के खगतिहिक, पणिं दि के० पंचेंजिय जाति; सास के जश्वासनाम; परघुचं के पराघातनाम, उच्चैर्गोत्र; संघयणागि के० संघयण तथा व संस्थान; नपु के० नपुंसकवेद, थी के० स्त्रीवेद, सुन गिअरति के सुजग, सुखर अने आदेय, ए शुनगत्रिक तथा एना इतर पुर्जाग्य, पुःस्वर, अनादेय, ए दौ ग्यत्रिक; ए चालीश प्रकृतिनो मंदरस, मिडचजगश्था के चारे गतिना मिथ्यात्वी जीव बांधे, तिहां त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, शुनवर्ण, गंध, रस, स्पर्श, तैजस, कार्मण, अगुरुलघु, निर्माण, पंचेंजियजाति, पराघात, जहास, ए पंदर प्रकृतिना तिर्यंचमनुष्य, मिथ्यात्वी तत्प्रायोग्य संक्वेशे नरक प्रायोग्य नामकर्मनी अहावीश प्रकृति बांधतां, मंदरस बांधे. एना बंधकमांहे संक्लिष्टपणुं होय, ए पुण्यप्रकृति बे, एनो संक्लिष्टे मंदरस बांधे, तथा नारकी अने सनत्कुमारादिकथी सहस्रारांत लगेंना मिथ्यात्वी देवता संक्शे तिर्यंचगति प्रायोग्य नामकर्मनी गणत्रीश प्रकृति बांधतां, पण ए पंदर प्रकृतिना मंदरस स्वामी होय, तथा ए पंदर मांहेथी पंचेंजियजाति अने त्रसनाम विना शेष तेर प्रकृतिना मंदरस खामी, नवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी, सौधर्म अने ईशानना, देवदेवी, मिथ्यात्वी, एकेंजिय प्रायोग्य बांधता एनो मंदरस बांधे, तथा त्रसनाम श्रने पंचेंजियजाति, एबे प्रकृति कांश एक तेथी पण विशुद्धाध्यवसायें पंचेंजिय प्रायोग्य बांधतां, मंदरसे बांधे, एम पंदर प्रकृतिना मंदरस स्वामी, चतुर्गतिक मि. थ्यात्वी जीव कह्या. तथा स्त्रीवेद अने नपुंसकवेद, ए बे मोहनीयनी प्रकृतिना मंदरस बंध स्वामी चतुर्गतिक जीव मिथ्यात्वी विशुद्ध थका सम्यक्त्वानिमुख थका होय. ए बे पापप्रकृति नणी विशुछियें मंदरस बांधे. मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वी, शुनखगति, अशुनखगति, ब संघयण, बसंस्थान, सुनग, सुखर, श्रादेय, दौ ग्य, उःस्वर, अनादेय अने उच्चैर्गोत्र, ए त्रेवीश प्रकृतिना मंदरस स्वामी मिथ्यात्वी जीव घोलना परिणामी परावर्ते एनी विरोधिनी प्रकृति बांधतां एवा चतुर्गतिक जीव जाणवा. जे जणी सम्यकदृष्टि देवता तथा नारकी तो मनुष्य प्रायोग्य बांधतां तिर्यंच गत्यादिक प्रायोग्य विरोधिनी प्रकृति बांधे नहीं, तथा ऋषननाराचादिक संघयण पण न बांधे, तथा सम्यकदृष्टि मनुष्य तिर्यंच तो देवता प्रायोग्य बांधतां समचतुरस्त्र संस्थान बांधे, शेष पांच संस्थान न बांधे, तेमाटें सम्यकदृष्टिने विरोधिनी प्रकृति साथे परावर्ते बंध नथी, तेथी ते मंदरस बंधना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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