________________
संग्रहणीसूत्र. वैमानिक नहीं ते असुरा के एक असुरकुमार निकाय, बीजा नाग के नागकुमार, त्रीजा सुवन्ना के सुपर्णकुमार, चोथा विजु के० विद्युतकुमार, पांचमा अग्गीय के अग्निकुमार, बहा दिव के छीपकुमार, सातमा उदहिय के उदधिकुमार, श्रापमा दिशि के दिशिकुमार, नवमा पवण के वायुकुमार, दशमा थणिय के स्तनितकुमार, ए रीते दसविहजवणवई के दशप्रकारना जुवनपतिदेवो, तेसु के० ते एकेका निकायनेविषे एक दक्षिणश्रेणीनो, अने एक उत्तरश्रेणीनो, ए रीते प्रत्येके छ. उदा के बेबे इंकजे. अहींयां ए दशनिकायना देवोने कुमार एवं विशेषण एटलामाटे दीधुं ले के ते बालकनी परे क्रीडा करनारा डे ॥ १५ ॥
॥ हवे पूर्वोक्त दशनिकायना इंशोनां नाम कहे . ॥ चमरे बलीअ धरणे ॥ नूयाणंदेय वेणुदेवेय ॥ तत्तोय वेणुदाली हरिकंते हरिस्सरे चेव ॥२०॥ अग्गिसिद अग्गिमाणव ॥ पुन्न विसि तदेव जलकंते॥ जलपद तह अमिअगई। मिय वाहण दाहिणुत्तर ॥१॥वेलंबेय पनंजण ॥ घोस महाघोस एसि मन्नयरो॥ जंबुद्दीवं उत्तं ॥ मेरुं दंडं पदुकानं ॥२२॥ अर्थ-श्रहीयां “ दाहिणुत्तर ” ए पद दशे स्थानके जोडीए. केमके एकेक निकायना एक दक्षिण श्रेणीनो इंज, थने बीजो उत्तरश्रेणीनो इं . तेमनां क्रमे करी नाम कहे . त्यां पहेला असुरकुमारनिकायना दक्षिण दिशिनो चमरेंड असुरकुमार, अने उत्तरदिशिनो बलिं असुरकुमार, बीजा नागकुमारनिकायना दक्षिण दिशिनो धरणे अने उत्तर दिशिनो नूताने. त्रीजा सुपर्णकुमारनिकाये दक्षिण दिशिनो वेणुदेवेंश, अने उत्तरदिशिनो वेणुदालिंड, चोथा विद्युत्कुमारनिकाये हरिकंतेंड अने हरिसहेंज. चेव के निश्चेथकी ॥२०॥ पांचमा अग्निकुमार निकाये अग्निशिखें, अने अग्निमाणवेंज. बहा दीपकुमारनिकाये दक्षिण पूर्णे, अने उत्तरे विशिष्टेड. सातमा उदधिकुमारनिकाये दक्षिणे जलकंतें, अने उत्तरे जलप्रनेड. श्रापमा दिशिकुमारनिकाये दक्षिणे अमितगतीं अने उत्तरे अमितवाहनेछः ॥२१॥नवमा वायुकुमारनिकाये दक्षिणे वेलंबेंज अने उत्तरे प्रनंजनें. दशमा स्तनितकुमार निकाये दक्षिणे घोषे अने उत्तरे महाघोज. एसिं के ए वीशे इंज मांहेलो कोई पण इंस जो पोतानी समर्थाई फोरवे तो जंबुद्धीपने बत्राकारे करे, अने मेरुपर्वतनो दंड काऊ के० करवाने समर्थ डे, एटले मेरुपर्वतने डाबाहाथ उपरे धरे तोपण शरीरने का प्रयास जणाय नहीं. एवा ए सर्वे इंजो पहु के प्रनु एटले समर्थ डे. अर्थात् साधारण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org