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________________ ६३० शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ अहींयां सघले गुणाकार, सूक्ष्म क्षेत्र पस्योपमना असंख्यातमा नागें वर्त्तता समय प्रमाण जाणवो.एम आगले योगस्थानकें पण एहिज गुणाकार लेवो. ॥ ५३॥ असमत्त तमुक्कोसो, पड़ जहनिअर एव वि गणा॥ . अपजेयर संखगुणा, परमऽपज बिए असंख गुणा ॥ ५४॥ अर्थ-असमत्ततमुक्कोसो के असमाप्त एटले अपर्याप्ता ते पांच त्रस लेवा, एटले विकवेजिय त्रण तथा श्रसन्नीथा, सन्नीया, ए पांच अपर्याप्ता एटले जेणे श्रारंजी पर्याप्ती पूरी नथी करी, ते जीव अपर्याप्ता जाणवा. ते पांचेना उत्कृष्ट योग अनुक्रमे असंख्यात गुणा बे. ते कहे. (१४) ते थकी बेंजिय अपर्याप्तानो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणो. (१५) तेथकी तेंडिय अपर्याप्तानो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणो. (१६ ) तेथकी चौरिंजिय अपर्याप्तानो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणो. ( १७ ) तेथकी श्रसन्नीया पंचेंजिय अपर्याप्तानो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणो. (१०) तेथकी सन्नीश्रा पंचेंज्यि अपर्यासानो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणो. एम वली पङा के० ए पांच पर्याप्तानां जहन्नियर के जघन्य योगस्थानक अनुक्रमें लेवां. एटले (१५) तेथकी बेंजिय पर्याप्तानो जघन्य योग असंख्यात गुणो. (२०) तेथकी तेंजियने पर्याप्तानो जघन्य योग असंख्यात गुणो. (२१) तेथकी चौरिंजिय पर्याप्तानो जघन्य योग असंख्यात गुणो. (२५) तेथकी असन्नीथा पंचेंजिय पर्याप्तानो जघन्य योग असंख्यात गुणो. (२३) तेथकी सन्नीथा पंचेंजिय पर्याप्तानो जघन्य योग असंख्यात गुणो. हवे ए थकी इअर के० श्तर एटले ए पांचे पर्याप्ताना उत्कृष्ट योग अनुक्रमें कहेवा. (२४) तेथकी बैंजिय पर्याप्तानो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणो. (२५) तेथकी तेंघिय पर्याप्तानो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणो. (२६) तेथकी चौरिंघिय पर्याप्तानो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणो. (२७) तेथकी असन्नीया पंचेंजिय पर्याप्तानो उत्कृष्ट योग, असंख्यात गुणो. (२०) तेथकी सन्नीया पंचेंजिय पर्याप्तानो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणो. (शए)ते थकी अनुत्तरसुरनो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणो. (३०) तेथकी ग्रैवेयक सुरनो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणो, (३१) तेथकी युगलियानो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणो. (३२) तेथकी आहारक शरीरनो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणो. तेथकी शेष देव, नारक, तिर्यच अने मनुष्यनो यथोत्तर उत्कृष्ट योग असंख्यात गुंणो जाणवो. एम योगस्थानक कह्यां. - एव के० एमज ए सात पर्याप्त अने अपर्याप्ताना ने करी चौद जातिना जीव, तेना कर्मबंधना जघन्य अने उत्कृष्ट स्थितिना वचमांना अंतरें जेटला समय तेटला विश्गणा के० स्थितिबंधनां स्थानक, तेनुं अल्पबहुत्व कहे डे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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