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________________ शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. Ա ६३ पजेयर संखगुणा के० ( १ ) तिहां सूक्ष्म एकेंद्रिय अपर्याप्तानुं स्थितिस्थानक स्तोक. ( २ ) ते थकी बादर एकेंद्रिय अपर्याप्तानां स्थितिस्थानक संख्यातगुणां. (३) ते थकी सूक्ष्म एकेंद्रिय पर्याप्तानां स्थितिस्थानक संख्यातगुणां. ( ४ ) तेथकी बादर एकेंद्रिय पर्याप्तानां स्थितिस्थानक संख्यातगुणां. (२) ते थकी बेंद्रिय पर्यासानां स्थितिस्थानक असंख्यातगुणां. जे जणी बेंद्रियनी उत्कृष्ट स्थितिथी पल्योपमने संख्यातमे जागें ऊणी जघन्य स्थिति होय, तेथी पढ्योपमना संख्यातमा जागना जेटला समय एटला बेंद्रिय अपर्याप्तानां स्थितिस्थानक होय, श्रने चार एकेंद्रियनां स्थितिस्थानक पल्योपमना असंख्यातमा जागना समयमात्र बे. असंख्या एटले पल्योपम संख्यांशें एक पस्योपमना संख्यातांश होय ते माटें बादर एकेंद्रिय पर्याप्ताना उत्कृष्ट स्थितिस्थानकथी बेंद्रिय अपर्याप्तानां स्थितिस्थानक असंख्यात गुणां जाएवां. (६) ते की वली तेहीज बेंद्रिय पर्याप्तानां उत्कृष्ट स्थितिस्थानक संख्यात गुणां जाणवां. ( 3 ) ते थकी तेंद्रिय अपर्याप्तानां स्थिति स्थानक संख्यातगुणां. (८) ते थकी तेंद्रिय पर्याप्तानां स्थितिस्थानक संख्यातगुणां. ( ९ ) ते थकी चौरिंडिय पर्याप्तानां स्थितिस्थानक संख्यातगुणां. (१०) ते थकी चौरिंद्रिय पर्याप्तानां स्थितिस्थानक संख्याari. ( ११ ) ते थकी असन्नी या अपर्याप्तानां स्थितिस्थानक संख्यात गुणां. ( १२ ) ते थकी सन्नीच्या पर्याप्तानां स्थितिस्थानक संख्यातगुणां, (१३) ते की सन्नी पंचेंद्रिय अपर्याप्तानां स्थितिस्थानक संख्यातगुणां. (१४) ते थकी सन्नी पंचेंद्रिय पर्याप्तानां स्थितिस्थानक संख्यातगुणां. अहींयां सीत्तेर कोमाकोमी सागरोपममध्ये पण पल्योपमना संख्यातांश संख्याता होय, तेथी संख्यातगुणा कहीये. सर्व पदने विषे संख्यातगुणा कहेवा. किंवा कोइक पदने विषे विशेष बे, ते कहे बे. परमपज बिए संखगुणा के० परं केवलं अपर्याप्त हींद्रिय पदने विषे श्रसंख्यातगुणां स्थितिस्थानक कवां ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ ५४ ॥ ॥ दवे जेटली पर्याप्तावस्थायें योग वृद्धि होय, ते कहे . ॥ पइखिए मसंखगुण विरि, य अप हि असंख लोग समा ॥ अद्यवसाया दिया, सत्तसु खासु असंखगुणा ॥ ५५ ॥ अर्थ - पखियं के प्रतिक्षण एटले समय समय प्रत्यें अपर्याप्तावस्थायें जे योगस्थानक होय, तेथी बीजे समयें असंखगुणविरिय के० असंख्यात गुण वृद्धि योगस्थानक होय, तेथी चीजे समये वली असंख्यात गुंण वृद्धि योगस्थानक होय. एम अप के अपर्याप्ताने चरम समय लगें असंख्यात गुण वृद्धि योगस्थानकनी होय, पर्याप्त पूर्ण करा पढी पर्याप्ताने संख्यात गुण वृद्धि, असंख्यात गुण वृद्धि, संख्या Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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