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________________ शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ ६३७ समय सुधी रहे. इत्यादिक जघन्य मध्यम प्ररूपणा सर्व कर्म प्रकृतिथी जाणवी ॥ इति॥ ॥ हवे योगस्थानकना स्वामी कहे .॥ सुहुम निगोआ खण, प्पजोग बायरप विगल अमण मणा ॥ अपज लहु पढम 5 गुरु, पजहस्सि अरोअसंख गुणो ॥ ५३ ॥ श्रर्थ-योग ते वीर्यस्थान व्यापार पराक्रम कहीये. वीर्यांतरायना व्यापारथी उपर्नु जे कायादिकन परिस्पंद, ते योग कही. सुहुम निगोआखणप्पजोग के० (१)सूक्ष्म निगोदिया, लब्धि अपर्याप्ताने आदिक्षणे एटले नव प्रथम समये अल्प जघन्ययोग ते स्तोक. (२) तेथकी बायरप के बादर निगोदि लब्धि अपर्याप्तो तेने नव प्रथम समय जे योग ते असंख्यात गुणो जाणवो. (३) तेथकी विगल के बेंजिय, तेंजिय श्रने चौरिंजिय एटले अनुक्रमें बेंडिय अपर्याप्ताने नव प्रथम समये योग असंख्यात गुणो जाणवो. (४) तेथकी तेंघिय अपर्याप्तानो जघन्ययोग, असंख्यात गुणो जाणवो. (५) तेथकी लब्धि अपर्याप्ता चौरिंजिय जीवने नव प्रथम समयें जघन्ययोग असंख्यात गुणो. (६) तेथकी अमण के जेने मन नथी एवा थसनीथा पंचेंजिय लब्धि अपर्याप्ताने नव प्रथम समयें जघन्ययोग, असंख्यात गुणो. (७) तेथकी मणा के मनःपयोतिना श्रारंनक एवा सन्नीया पंचेंजिय लब्धि अपर्याप्ताने नव प्रथम समयें जघन्ययोग असंख्यात गुणो. ए सात अपज के लब्धि अपर्याताना नव प्रथम समय लहु के जघन्ययोग लेवा, तेथकी पढम के प्रथमना बे एटले अपर्याप्ता, सूक्ष्म अने बादर निगोदीओनो गुरु के उत्कृष्ट योग कहेवो. एटले (७) सूदमनिगोदीश्रा लब्धि अपर्याप्तानो उत्कृष्ट योग, असंख्यात गुणो. (ए) तेथकी बादर निगोदोश्रो एकेंजिय लब्धि अपर्याप्तानो उत्कृष्ट योग, असंख्यात गुणो. पजह स्सिअरो के तेथकी एज बे पर्याप्तानो हस्व एटले जघन्ययोग लेवो. एटले (१०) तेथकी सूक्ष्म निगोदीश्रा पयोप्तानो जघन्ययोग असंख्यात गुणो. (११) तेथकी बादर एकेंजिय पर्याप्तानो जघन्ययोग असंख्यात गुणो. तेथकी इतर एटले एज बे सूक्ष्म पर्याप्तानो उत्कृष्ट योग कहेवो. एटले (१२) सूक्ष्म निगोदीया पर्याप्तानो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणो. (१३) तेथकी बादर पर्याप्ता एकेजियनो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणो, एटले ए तेर योगस्थानक कह्यां. तेमध्ये एकेजियना नेद चार बे, ते जघन्य तथा उस्कृष्ट नेदें करी आठ नेद थया, तथा विकलेंजियना त्रण अने असन्नीआ तथा सन्नीआ अपर्याप्ता, एवं पांचना जघन्ययोग कह्या, एवं तेर योगस्थानकनुं अल्प बहुत्व अनुक्रमे असंखगुणो के० असंख्यात गुणुं जाणवू. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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