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________________ शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ ६३१ तेथ अध्यवसाय स्थानक पण थोमां होय, तेथी स्थितिस्थानक पण बादरनी छापेकायें थोमां होय, तेणे जघन्य स्थिति बादरनी जघन्य स्थिति थकी उत्कृष्टी वी होय तो स्थिति विशेष पण जंबा होय, तरुं थोडुं ते जणी बादर पर्याप्ता एकेंद्रियना जघन्य स्थितिबंध थकी सुदुमपहिगो के सूक्ष्म एकेंद्रिय पर्याप्ताना जघन्य स्थितिबंध विशेषाधिक का. एटले कांइक जाजेरा जाणवा. (४) एसिप ऊपलहु के० ते थकी ए बन्ने अपर्याप्तानो लघु एटले जघन्य स्थितिबंध यावी रीतें होय, ते कहे बे. सूद एकेंद्रिय पर्याप्ताना जघन्य योगथी बादर एकेंद्रिय पर्याप्ताना योगस्थानक थोमां होय, तेथी अध्यवसायस्थानक तथा स्थितिस्थानक पण थोडां होय, केम के जघन्य ने उत्कृष्ट स्थितिनी वचालें प्रांतरूं योकुं तेथी सूक्ष्म एकेंद्रिय पर्याप्ताना जघन्य स्थितिबंधथ की बादर एकेंद्रिय अपर्याप्तानो जघन्य स्थितिबंध विशेषाधिक जाणवो. ( ५ ) तेथकी सूक्ष्म एकेंद्रिय अपर्याप्तानो जघन्य स्थितिबंध विशेषाधिक होय जे जणी बादर अपर्याप्तानी स्थितिविशेषयी सूक्ष्म पर्याप्तानी स्थिति विशेष थोडी बे. (६) सुडुमेर अपका के० सूक्ष्म अपर्याप्ताना जघन्यस्थितिबंधकी उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेषाधिक होय. ( 9 ) ते थकी इतर ते बादरा पर्याप्तानो उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेषाधिक जाणवो. जेजणी बादर पर्याप्तानी जघन्यस्थिति सागरोपमानो सात एक जाग पल्योपमने असंख्यातमे जागें ऊणो दोय, ते थकी समयाधिक समयाधिक पस्योपमना असंख्यातमा जागना असंख्य समय नाग प्रमाण स्थिति विशेष ते सर्व स्तोक, तेहने गर्ने सूक्ष्म अपर्याप्तानो स्थिति विशेष, तेहने गर्ने बादर अपर्याप्तानो स्थिति विशेष, तेहने गर्ने सूक्ष्म पर्याप्तानो स्थिति विशेष, सर्व स्तोक ते जण सूक्ष्म अपर्याप्ताना उत्कृष्ट स्थितिबंधथकी बादर अपर्याप्तानो उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेषाधिक. (८) तेथकी पगुरु के० सूक्ष्म पर्याप्तानो उत्कृष्टस्थितिबंध विशेषाधिक होय. ( ७ ) तेथकी बादर पर्याप्तानो उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेषाधिक. ॥ ४९ ॥ लहु बिपत पको, अपति पर बिप्र गुरु दिगो एवं ॥ ति च प्रसन्निसु नवरं, संखगुणा बिच प्रमणपते ॥ ५० ॥ अर्थ - (१०) बादर एकेंद्रिय पर्याप्ताने मिथ्यात्वमोहनीयनो उत्कृष्ट स्थितिबंध सागरोपम प्रमाण बे ते थकी बिापत के० बेंद्रिय पर्याप्तानो लहु के० जघन्य स्थितिबंध पुरुष वेदादिकनो पण सातइया पच्चीश नाग एटले त्रण सागरोपम उपर सातइधा चार जाग पस्योपमने श्रसंख्यातमे जागें ऊणा होय तेमाटें संख्यात गुणो जावो. जे जणी एकथी त्रिगुणो जाजेरो थयो . Jain Education International For Private Personal Use Only www.jairielibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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