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शतकंनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५
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सांत, एबे जांगे चारे बंध होय, तेमध्यें निद्रापंचक, प्रथम कषाय बार, मिथ्यात्व, जय, जुगुप्सा, तैजस, कार्मण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, ए गणत्रीश प्रकृतिनो जघन्य स्थितिबंध, स्वप्रायोग्य विशुद्धियें करी एकेंद्रिय पर्याप्तानें होय. ते वली कथंचित् हीनाध्यवसायें समयादिक अधिक अजघन्य बंध करे, वली विशुद्धियें जघन्यबंध करे, तेथी जघन्य ने अजघन्यपणे बेहु खख प्रकृतिना स्थितिबंध सादि ने सांतपणे जाणवा.
तथा एद्दिज गणत्रीश प्रकृतिना उत्कृष्टबंध संज्ञी पंचेंद्रियपर्याप्ता मिथ्यात्वीने संष्टि परिणामें होय, ते बे समय लगें होय तेवार पढी अध्यवसाय परावर्त्तियें समयादिक हीन अनुत्कृष्ट बंध करे, एम उत्कृष्ट अने अनुत्कृष्टबंध संक्लेश तथा विशुद्धिनी परावर्त्तियें होय तेथी सादि ने सांत ए वे जांगा होय.
अने ए गणत्री प्रकृतिथी शेष रही जे तहोंतेर ध्रुवबंधिनी प्रकृति तेनो बंध केवारेंक होय, अने केवारेंक न होय तेथी तेना उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य ने अजघन्य, ए चारे स्थितिबंधें सादि ने सांत, ए वे जांगा होय. केम के जेवारें बंध होय तेवारें सादि ाने जेवारें बंध न होय तेवारें सांत, एम बे जांगा होय. एम उत्तरप्रकृतिना चार स्थितिबंधने विषे सादि, अनाद्यादि जांगा विचारया ॥ ४७ ॥ ॥ दवे गुणठाणा श्रयीने उत्कृष्ट तथा जघन्य स्थितिबंध विचारे बे. ॥ साणाइ प्रपुवंतो, प्रयरंतो कोडि कोडिन नदिगो ॥
बंधो नहु दीणो नय, मिछे नवियर सन्निमि ॥ ४८ ॥
अर्थ- प्रथम जिन्नग्रंथिने अंतः कोटाकोटी सागरोपमथी अधिको स्थितिबंध न होय, ते कहे बे. सापाश्यपुवंतो के० साखादन गुणठाणाथी मांडीने पूर्वकरणनामा आठमा गुणवाणासुधी श्रयरंतो को डिकोडि के० अंतःकोमा कोमी सागरोपम प्रमाण स्थितिबंध संज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्ताने होय, पण तेथकी नहिगोबंधो के अधिक बंध न होय; तेमज अंतः कोमा कोमी सागरोपमयी हीन एटले उंबो बंध पण नहु ho न होय. श्रींश्रां कोई पूछे जे साखादनर्थी श्रावमा गुणठाणा सुधी जो बंधनुं - हीनाधिकपणुं नथी, तो जिहां स्थितिबंधनं अल्प बहुत्व कहेशे, तिहां साधुनी उत्कृष्ट स्थितिबंधथी देश विरतिनो जघन्य स्थितिबंध संख्यातगुणो होय, ते थकी देशविरतिनो उत्कृष्ट स्थितिबंध संख्यातगुणो दोय, ते थकी अविरति सम्यक्टष्टि पर्याप्ता अपर्याप्ताना जघन्य उत्कृष्ट स्थितिबंध असंख्यात गुणा होय, तो ए अल्प बहुत्वप हीनाधिकावें केम घटे ? अहींथां गुरु उत्तर कहे बे के, जेम अंतरमुहूर्त्त नव समयश्री मांगीने एक समय ऊण मुहूर्त्त पर्यंत होय बे, तेना असंख्याता भेद थाय.
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