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६श्न .
शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ थायु बांधवा मांडे, तेवारें सादि अने अंतरमुहूर्ते बांधी रह्या पली सांत, ए बे लांगा होय ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ ४६॥ ॥ एम मूलप्रकृतिना चार स्थितिबंधना सादि, बीजो अनादि, सांत अने अनंत, ए चार नांगा विचारीने हवे ते चार नांगा उत्तर प्रकृतिने विषे विचारीयें बैयें.॥
चन मे अजदन्नो, संजलणा वरण नवग विग्घाणं॥ ... सेस तिगिसा अधुवो, तह चनदा सेस पयडीणं ॥४७॥
अर्थ-संजलण के संज्वलनो क्रोध, संज्वलनो मान, संज्वलनी माया अने संज्वलनो लोज, ए चार कषायनो जघन्य स्थितिबंध, बे मास, एक मास, अर्डमास अने अंतरमुहूर्तरूप अनुक्रमें जाणवो. ते नवमा गुणगणे स्वस्व बंधविछेदने प्रथम समय होय, तथा श्रावरणनवगविग्घाणं के पांच झानावरण, चार दर्शनावरण, पांच अंतराय, ए चौद प्रकृतिनो जघन्य स्थितिबंध, अंतरमुहर्त मान दशमा गुणगणाने चरमबंधे होय, ते विना बीजा सर्व स्थितिबंध अजघन्य जाणवा. ए अढार प्रकृतिनो चननेउअजहन्नो के अजघन्य स्थितिबंध चार नेदें होय, ते कहे जे. के जीवें नवमुं श्रने दशमुं गुणगणुं कडं नथी, तो तेणे जघन्य स्थितिबंध नथी कस्यो. अजन्यवध अनादि जाणवो. ए प्रथम नंग. तथा जेणे जघन्यबंध करी वली श्रेणीथी पडतां समयाधिक स्थितिबंध अजघन्य करे, तिहां सादि. ए बीजो नंग जाणवो. तथा जे जव्य हशे ते अवश्य श्रेणी करशे, तेवारें तेने अजघन्यस्थितिबंधनुं सांतपणुं थशे, ए त्रीजो जंग जाणवो. श्रने अनव्य जीव ए अढार प्रकृतिनो जघन्य स्थितिबंध केवारें पण नहीं करशे, तेथी तेने ए अढार प्रकृतिनो अजघन्य स्थितिबंध अनंत, ए चोथो नंग जाणवो. एम ए अढार प्रकृतिनो अजघन्य स्थितिबंध चार नांगे होय. . सेसतिगि के० अढार प्रकृतिना शेष उत्कृष्ट, अनुकृष्ट अने जघन्य, ए त्रण स्थितिबंध साश्अधुवो के सादि अने अध्रुव एटले सांत, ए बे नांगे होय. जे जणी ए अढार प्रकृतिमा चार प्रकृतिनो उत्कृष्टस्थितिबंध चालीश कोमाकोडी सागरोपमनो बे, अने चौद प्रकृतिनो त्रीश कोडाकोडी सागरोपमनो उत्कृष्टबंध बे. ए सर्व संक्लिष्टं पंचेंजिय पर्याप्तो जीव बांधे, ए एक समय, बे समय लगें बांधे, वलतो समयादिक हीन स्थिति बांधे, ते अनुत्कृष्ट जाणवोः वली अनुत्कृष्टथी उत्कृष्ट करे, तेश्री ए बे बंधे सादि अने सांत, ए बे नांगा जाणवा, तथा जघन्यबंध पण एनो नवमे बने दशमे गुणगणे एक समय मात्र होय ते जणी सादि सांत होय. .. तह के० तेमज सेसपयमीणं के० ए अढार प्रकृतिथकी शेष रही जे एकसो ने बे प्रकृति तेना चउहा के जघन्यादिक चार प्रकारना स्थितिबंध ते पण सादि अने,
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