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________________ ყი संग्रहणीसूत्र. ॥ हवे सनत्कुमारादिक उपरना देवलोकोना प्रत्येक प्रतरोनेविषे जघन्योत्कृष्ट श्रायुष्यी स्थिति जाणवाने अर्थे उपाय कहे बे ॥ सुरकप्पविइविसेसो ॥ सगपयरविदत्त इव संगुणि ॥ दिहिल सहि ॥ इतिय पयरंमि नक्कोसा ॥ १६ ॥ अर्थ- सुरकप्प के० देवोना कल्प एटले बार देवलोक तेने कल्प कहीए. अने नव ग्रैवेयक, तथा पांच अनुत्तर विमान एने कल्पातीत कहीए. तेना उत्कृष्टा श्रायुयनी जे विइ के स्थिति बे, तेनुं विसेसो के० विश्लेष करीए. एटले अधिकी स्थितिमांथी बी स्थिति काढी ए. एम विश्लेष कस्या पढी जे वधे, तेने सुरकल्प स्थिति विश्लेष कहीए. पढी ते विश्लेष देवलोकना पोतपोताना पयर के० प्रतरे करी वित्त के० वेर्हेचीए. पढी संगुटि के० अत्र ए स्थाने ते वांबीत प्रतर साथै सम्यक्प्रकारे गुणीए ने जे श्रांक आवे तेने हिल्लि िके० देवली उत्कृष्टि स्थिति तेणें सहि के० सहित करीए, तेवारे इच्छियपयरंमि के० इतिप्रतरनी उक्कोसा के० उकृष्टी स्थिति श्रावे. नुं उदाहरण कहे . सौधर्मदेवलोकना तेरमे प्रतरे उत्कृष्टी स्थिति वे सागरो - पमनी बे. छाने सनत्कुमारनं उत्कुष्टायु सात सागरोपम बे; तेमांथी देवली स्थितिना पूर्वोक्त सौधर्म देवलोकना बे सागरोपम बाद करीए वारे बाकी पांच सागरोपम रहे. ते पांच सागरोपमने सनत् कुमारना बार प्रतर बे, तेणेकरी वेर्हेचीए-ते यावी रीते जे, एक सागरोपमना बार बार जाग करीए, तो पांचे सागरोपमना बारीया साठ जाग याय, तेहने बारे प्रतरे वेहेंचीये तेवारे एकेका प्रतरे सागरोपमना बारीया पांच पांच जाग आवे. पढी देवला सौधर्मदेवलोकनी उत्कृष्टी स्थिति बे सागरोपमनीबे ते तेहनी साथे जेलीए, तेवारे त्रीजा सनत्कुमार देवलोकना पहेला प्रतरने विषे वे सागरोपम ने एक सागरोपमना बारीया पांच जाग उपर एटली उत्कृष्टी आयुष्यनी स्थिति थाय बे. तेमज बीजा प्रतरे बे सागरोपम ने उपर बारीया दश जाग कदेवा. त्रीजे प्रतरे त्रण सागरोपम ने उपर बारीया त्रण नाग कहेवा. ए रीते प्रतरे प्रतरे बारीया पांच पांच जाग वधारता जइए वारे, बेल्ला बारमा प्रतरे संपूर्ण सात सागरोपमनुं उत्कृष्टायु था. एम माहें साधिक स्थिति जाणवी. एहज रीते उपरना सर्व देवलोके प्रतरोना आयुष्यनी स्थिति काढवाने उपाय करवो ॥ १६ ॥ Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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