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शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५। ६१३ शमें नागें अथवा तेने पण त्रीजे नागें एटले एक्याशीमे नागें परजवायु बांधे, तेथी तेनी अबाधा पण तेटलीज होय. एम उत्कृष्ट अबाधासहित उत्तरप्रकृतिनी उत्कृष्ट स्थिति कही. ॥ इति ॥ ३४ ॥
॥ हवे उत्तरप्रकृतिनो जघन्य स्थितिबंध कहे .॥ लहु विव बंधो संजलण, लोह पण विग्घ नाण दंसेसु ॥
जिन्न मुहुत्तंतेअछ, जसुच्चे बारसय साए ॥ ३५ ॥ अर्थ-लहुविश्बंधो के लघु एटले जघन्य स्थितिबंध ते संजलणलोह के एक संज्वलनलोजनुं नवमा गुणगाणाने पांच में नागें चरमबंधे होय, तथा पणविग्घ के० पांच अंतरायकर्मनी प्रकृति अने नाण के पांच ज्ञानावरणीयनी प्रकृति तथा दंसेसु के चार दर्शनावरणीयनी प्रकृति, एवं चौद प्रकृतिनुं जघन्य बंध सूक्ष्मसंपराय गुणगणाने प्रांत समय होय. जे जणी ए पंदर प्रकृतिना बंधकमांहे एहिज अत्यंतविशुद्धि जे. अने ए पंदरनी अतिविशुद्धपणे जघन्य स्थिति बंधाय, ते जणी निन्नमुदत्तंते के0 चरम बंध अंतरमुहर्त्तनो होय. अने एनो अबाधाकाल पण अंतरमुइतनो जाणवो, जे जणी अंतर्मुहर्त स्थितिबंध कालनो अंतरमुहर्त्तथी संख्यातगुण हीन एवो अंतरमुहर्त्तनो अबाधाकाल होय, अह के आठ अंतरमुहर्त्त प्रमाण जघन्य स्थितिबंध ते जसुच्चे के एक यश कीर्त्तिनाम अने बीजो उच्चैर्गोत्र, ए बे प्रकृतिनो पण जघन्य स्थितिबंध थाप मुहत्ते प्रमाण ते सूदमसंपराय नामे दशमा गुणगणाने प्रांतें एनो चरमबंध होय, एनो अबाधाकाल पण जघन्य जाणवो. __ अने बारसयसाए के सातावेदनीयनो जघन्यस्थितिबंध बार मुहर्त्तनो तथा सिछातमध्ये एक मुहूर्त्तनो पण कहेलो . तथा अबाधाकाल अंतरमुहूर्त्तनो जाणवो, अने ए सातानो तथा उच्चैर्गोत्रनो उदय चौदमा गुणगणा लगें होय. ॥ ३५ ॥
दो ग मासो परको, संजलण तिगे पुम वरिसाणि ॥
सेसाणु कोसा, मिबत्त हिइए जलई ॥३६॥ . अर्थ-दोगमासोपस्को के बे मास, एक मास अने पदनो जघन्य स्थितिबंध, अनुक्रमें संजलण तिगे के संज्वलन त्रिकनो जाणवो. एटले संज्वलना क्रोधनो जघन्यस्थितिबंध, नवमा गुणगणाने बीजे नागें चरमबंधे बे मास प्रमाण होय, तथा संज्वलना माननो एक मासनो जघन्यबंध नवमा गुणगणाने त्रीजे नागें चरम बंधे होय, तथा संज्वलनी मायानो जघन्य स्थितिबंध, एक पखवामानो नवमा गुणगणाने चोथें नागें चरम बंधे होय, एने पोतपोताना बंधकमांहे ए हिज अतिविशुक्रिनुं अध्य
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