SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 637
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ उपर, एटलो उत्कृष्ट अबाधाकाल, ते त्रण पढ्योपमयी अधिक अबाधाकाल जाणवो. ए एकसो थहावन प्रकृतिनो उत्कृष्ट स्थितिबंध कह्यो, अने आठ प्रकृतिनो जघन्य स्थितिबंध काल कह्यो. ॥ इति समुच्चयार्थः॥ ३३ ॥ ॥हवे लाघवें श्रायुबंध एकेंजियादिकन कहे . ॥ ग विगल पुत्र कोमी, पलियाऽसंखंसान चन अमणा ॥ निरुवकमण उमासो, अबाद सेसाण नवंतंसो ॥ ३४ ॥ अर्थ-गविगलपुवकोडी के एकेंजिय जीवने तथा विकलें जिय कहेतां बेंजिय, तेंजिय, चौरी जिय, जीवने परनवायु उत्कृष्ट पूर्वकोमी प्रमाण बंधाय, पण पक्ष्योपम सागरोपम मान श्रायु न बांधे, केमके एकेंजियादिक जीव जे , ते देव नारकी मध्ये तथा असंख्यात वर्षायुवाला मनुष्य तिर्यंचनी गति मध्ये पण अवतरे नहीं, तेथी तत्प्रायोग्य आयु न बांधे, तथा पलियाऽसंखंसआउचउमणा के पल्योपमना असंख्यातमा नाग प्रमाण देवायु, तिर्यगायु, नरकायु अने मनुष्यायु, ए चार आयुष्य असंझीया पंचेंजिय तिर्यंच बांधे. केमके असंझीश्रा पंचेंजिय तिर्यंच चारे गति मांहे अवतरे तो खरा तथापि देवो मध्ये तो नुवनपति तथा व्यंतर मध्येज जाय, परंतु ज्योतषी तथा वैमानिकमध्ये न जाय, अने नरकगतिमध्ये पण प्रथम नरकना त्रण पाथमा लगें जाय, परंतु श्रागडे न जाय; ते माटें पख्योपमना असंख्यांशथी अधिक आयु न बांधे. तेथी तेने अबाधाकाल पूर्वकोमी त्रिन्नाग उत्कृष्टो जाणवो, तेटला कालें हीन पल्यासंख्यांश प्रमाण निषेककाल जाणवो. तथा निरुवक्कमण उ मासो के निरुपक्रमायुना धणी एवा देव, नारकी तथा युगलीया मनुष्य अने तिर्यंच, जेनुं श्रायु अध्यवसाय प्रमुख श्रावलीयें करी घटे नहीं तेवा आयुना धणी जे देवतादिक बे, ते परनवायुनो बंध निजलवायु बम्मास बते बांधे, तेथी तेने परनवायुनो उ महीना अबाधाकाल जाणवो. तथा मतांतरें युगलिया पण पस्योपमनो असंख्यातमो नाग शेष निजलवायु थके परनवायु बांधे, तेथी तेने पल्यासंख्यांश काल प्रमाण अबाधाकाल जाणवो, तथा नगवतीनी वृत्तिमध्ये नारकी अंतरमुहूर्त्तायु शेष परनवायु बांधे, एम कर्यु ले. तेथी नारकीने जघन्य अबाधाज होय. हवे निरुपक्रमायुना धणी मनुष्य अने तिर्यंच मुकीने ते विना अवाहसेसाणजवंतंसो के शेष थाकता जे सोपक्रमायुना धणी मनुष्य तथा तिथंच ते परजवायुबंध पोताना जवना श्रायुनो त्रीजो जाग शेष हुँते तथा त्रीजा नागनो त्रीजो जाग शेष ढुंते एटले स्वनवायुने नवमे जागे अथवा तेने पण त्रीजे नागें एटले सत्तावी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy