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शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ उत्कृष्टी स्थिति कोडाकोडी सागरोपम होय. अहीशा शिष्य पूजे जे के, हे जगवन् कोमाकोमी सागरोपम जिननामनो काल कह्यो एटलो काल तो, जीव तिर्यंचगतिमां गया विना न रहे. अने तिर्यंचगतिना जीवमध्ये तो जिननामनी सत्ता पण निषेधि , तो एटलो काल क्या पूर्ण करे ? तथा तीर्थकरनामकर्म तीर्थंकरजव थकी अर्वाक चीजे नवे बांधे जे एम पण का, ते पण केम घटे ? यहींयां गुरु उत्तर कहे के “जं मिह निकाश्य तिबं, निरय नवे तंनिसेहिकं संतं ॥ श्यरंमि ननिदोसो, उव. दृणा वट्टणामऊ ॥१॥" ___ ए गाथानो अर्थ कहेडे के, तिर्यंचमध्ये जे जिननामनी सत्ता निषेधि तथा त्रीजें जवें बंधाय, ते तो निकाचित जिननामनी थपेक्षायें जाणवो. तीर्थकरजव पहेलो, जीजा नवें निकाचे, ते कर्म सकल करणने असाध्य होय, श्रने जे निकाचित न होय, ते कर्मनी तो अपवर्त्तना कहेतां स्थितिरसनु घटावq अने उद्वर्तना एटले स्थितिरसनुं वधारदुं तथा संक्रम एटले पर प्रकृति मांहे संक्रमाव, तथा उवेलq इत्यादिक करण साध्य होय. ते जिननाम घणा जव पहेलो पण बंधाय. तथा अंतःकोमाकोमी सागरापमे स्थिति पण अपवर्तनायें घटावे,तथा पर प्रकृति मांहे संक्रमावतां कांश दूषण नथी तथा ए श्राप कर्म प्रकृतिनो जिन्नमुहबाहा के अबाधाकाल अंतर मुहर्त बे. ते नणी जिननाम जेणे बांध्यु होय, तेने अंतर मुहूर्त पड़ी जिनादिकनो प्रदेशोदय थाय, तेथी करी तेनो अन्य जीवनी अपेक्षायें महीमा विशेष होय, पूजा महत्वनी वृद्धि होय.एम एकसो ने बपन्न प्रकृतिनी उत्कृष्टि स्थिति कही. __ हवे ग्रंथगौरव टालवा जणी ए पाठ प्रकृतिनी जघन्य स्थिति अहींज कहे . जिननाम अने थाहारक सप्तक, एवं आठ प्रकृतिनी सहुविश्संखगुणूणा के लघु एटले जघन्य स्थिति, उत्कृष्ट स्थिति थकी संख्यात गुणी हीणी जाणवी; जे जणी अंतर मुहूर्त्तनी पेरें अंतःकोडाकोडीना पण असंख्याता नेद होय, जे जणी संझीया पंचेंजिय पर्याप्तानी स्थितिबंधयी अधिक उत्कृष्टी स्थिति साधु बंध खगें जेटला स्थितिबंध, ते सर्व अंतःकोडाकोडी सागरोपम प्रमाण कहीये.
हवे शेष बे आयुनो उत्कृष्ट स्थितिबंध कहे . नरतिरियाणाउपातिगं के एक मनुष्य- आयु अने बीजुं तिर्यंचनुं श्रायु, ए बेनो उत्कृष्ट स्थितिबंध, त्रण पथ्योपम जाणवो. जे जणी प्रथम आरे तथा देवकुरु अने उत्तरकुरुना मनुष्य त्रण पक्ष्योपमायु बे. तेनो थबाधाकाल उत्कृष्टथी तो पूर्वकोमीना त्रीजा जाग प्रमाण. जे जणी संख्यातावर्षायुना मनुष्य विना अन्य गतिथी चवी युगलीयुं मनुष्य न थाय ते जणी तेत्रीश लाख, तेत्रीश हजार, त्रणसें ने तेत्रीश पूर्व अने एक पूर्वनो त्रीजो नाग
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