SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 635
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६१० शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ त्रस्थिति, प्रांतें अर्डदल होय. ए रीते जे उदयावलिकानुं रचवू, ते निषेक कहीये. तेनो काल ते निषेककाल जाणवो. ते जे कर्मनी जेटली स्थिति, ते मध्ये थी अबाधाकाल काढतां शेष रहे, ते निषेककाल कहीये. एवश्याबाहवाससया के जे कर्मनी जेटला कोमाकोमी सागरोपमनी स्थिति, एटला सश्कडा वर्ष, ते कर्मनीषबाधा जाणवी, ते जघन्य अबाधाकालनी स्थिति अंतरमुहर्तनी , तिहां कंमक एटले अंगुलीनो असंख्यातमो नाग तेना जेटला आकाशप्रदेश तेटलासमय प्रमाण जे कर्मस्थिति विशेष,तेटली स्थिति विशेष अतिक्रमे थके प्रथम जे उत्कृष्ट अबाधाकालनुं स्थानक हतुं, ते अबा. धाकालना स्थानकमांडेथी एक समय हीन अबाधाकालनुं बीजुं स्थानक थाय. एम वली पण कंमक मात्र हीन कर्म स्थिति होय थके समय हीन अबाधाकालनुं त्रीजुं स्थानक थाय, एम कंमक कंडक मात्र स्थितिनी हाणीयें समय समय हीन अबाधाकालर्नु पण स्थानक थाय. एम अबाधाकालनी उत्कृष्ट स्थिति थकी. उतरतां जघन्य स्थितिपर्यंत कंमकसंख्या अने अबाधाकालनां स्थानक यावत् तुल्य थाय. जे मूलप्रकृतिनी तथा उत्तरप्रकृतिनी जेटली कोडाकोमी सागरोपमनी स्थिति होय ते प्रकृतिने तेटला शत वर्षनो अबाधाकाल होय. एटले बांध्या पली पण एटला काल लगें ते कर्म उदय न आवे, तेने अबाधाकाल कहीये. तथा पोतपोताने अबाधाकालें हीन जे कर्म स्थिती, ते कर्मनो निषेक कदेतां नोग्यकाल होय.निषेक ते कर्म उदयकालें प्रथम बहु प्रदेशाग्र सामटो उदय आवे अने पढ़ी समय समय हीन हीनतर थाय. यावत् कर्मनी स्थिति ते बेहले समये अत्यंतम उदय होय, एने निषेक कहीये. ए सत्तावन प्रकृति तथा आगल नेव्याशी प्रकृतिनुं उत्कृष्ट स्थितिबंध कह्यु, अने देवायु तथा नरकायु, ए वे प्रकृतिनुं उत्कृष्ट स्थितिबंध तेत्रीश सागरोपम प्रमाण मूलप्रकृति मध्ये कडं बे. तेहीज शाही पण ले. एम सर्व मली एकसो ने अडतालीश प्रकृतिनुं उत्कृष्ट स्थितिबंध कह्यु. ॥ इति जावार्थः ॥ ३ ॥ .. गुरु कोडि कोडी अंतो, तिबगहाराण निन्नमुद बादा ॥ ॥अथ जघन्य स्थितिबंधः॥ लहु विश् संख गुणूणा, नर तिरियाणान पन्नतिगं॥३३॥ अर्थ-गुरुकोमिकोमीअंतो के० उत्कृष्ट स्थितिबंध अंतःकोमाकोमी सागरोपम कालनो तिलाहाराण के तीर्थकर नामकर्म तथा आहारकशरीर, थाहारकअंगोपांग, थाहारकसंघातन, श्राहारकाहारकबंधन, थाहारकतैजसबंधन, आहारककार्मणबंधन श्रने आहारकतैजसकामणबंधन, ए आहारक सप्तक. एवं नामकर्मनी पाठ प्रकृतिनी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy