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शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५
६०ए औदारिकतैजसबंधन, औदारिककार्मणबंधन, औदारिकतैजसकार्मणबंधन, ए श्रौदारिक सप्तक लीजें, केम के ए औदारिकशरीर बांधतां साते साथें बंधाय. एवं वीश प्रकृति थ३. निरयाग के नरकटिक, नीए के नीचैर्गोत्र, तेथपण के एक तैजस, बीजें कार्मण, त्रीजु गुरुलघु, चोथु निर्माण अने पांचमुं उपघात, ए तैजस पंचक, मतांतरें तैजससंघातन, कार्मणसंघातन, तैजसतैजसबंधन, कार्मणकार्मणबंधन, तैजसकार्मणबंधन, ए नेलतां तैजस दशक थाय. एवं तेत्रीश प्रकृति थक्ष, तथा अथिरबक्के के अथिरनाम, अशुजनाम, दो ग्यनाम, फुःखरनाम, अनादेयनाम अने अयशश्रकीर्ति नाम, ए अथिरषट्क. एवं उंगणचालीश प्रकृति थ. तसचउ के त्रसनाम, बादरनाम, पर्याप्तनाम अने प्रत्येकनाम, ए त्रसचतुष्क. एवं तालीश प्रकृति थश थावर
0 स्थावरनाम, ग के० एकेंजियजाति, पणिदि के० पंचेंजियजाति, ए तालीश प्रकृति श्रा गाथामां कही. ॥ इति ॥ ३१॥
नपु कुखगइ सासचन, गुरु करकड रुक सीय फुग्गंधे ॥
वीस कोडा कोडी, एवश्आ बाद वास सया ॥ ३२॥ अर्थ- नपु के नपुसकवेदमोहनीय, कुखग के अशुजविहायोगति, सासचज के उश्वासनाम, उपघातनाम, आतपनाम अने पराघातनाम, ए उश्वासचतुष्क, गुरु केत गुरुस्पर्शनाम, करकड के कगरस्पर्शनाम, रुक के रूदस्पर्शनाम, सीय के शीतस्पर्शनाम, फुग्गंधे के पुगंधनाम. एवं अगीयार प्रकृति अने पूर्वली गाथामध्ये तासीश प्रकृति कही बे. एम सर्व मली सत्तावन प्रकृतिनो उत्कृष्ट स्थितिबंधकाल वीसंकोडाकोडी के० वीश कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण जाणवो. ए उत्कृष्ट संक्शे वर्त्ततो मिथ्यात्वी जीव बांधे, ते मध्ये पांच प्रकृति मोहनीयनी, एक गोत्रनी अने शेष एकावन प्रकृति नामकर्मनी जाणवी. तिहां श्रवाधाकाल बे हजार वर्षनो होय. त्यांलगें ते कर्म रसथी तथा प्रदेशश्री उदय न श्रावे अने जो संक्रमकरणे करी तुल्यप्रकृति समजातिय मध्ये संक्रमावी उदय आणे, तो एक बंधावलिका, बीजी संक्रमावलिका व्यतित थये थके उदय आवे. जेम अनंतानुबंधीआनी विसंयोजना करी उपशांत मोहथी अकादये पडे तो कोइएक प्रथम गुणगणे आवे. त्यां मिथ्यात्व प्रत्ययें अनंतानुबंधीया चार बांधे, तेनी बंधावली गये थके अप्रत्याख्यानादिक जे पूर्व बांधे. बे तेमांहे संक्रमावी वेदे, तथा अपवर्तनादिक करणे करी, अल्पकालकरी पण वेदे, तथा अबाधा अतिक्रमे थके गायना प्रबनी पेरें. प्रथम बहु विस्तीर्णदल रचना, बीजे समयें विशेष हीन, एम समय समय विशेष हीन हीन करतां ए रीते अर्डमा
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