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________________ ទី ០១ शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ बीजी शुजनाम, त्रीजी सौजाग्यनाम, चोथी सुखरनाम, पांचमी आदेयनाम, बही यशःकीर्तिनाम, एवं दश प्रकृति थ तथा अगीधारमी पुरिस के० पुरुषवेद मोहनीयनी प्रकृति, बारमी र के रतिमोहनीय, तेरमी हासे के हास्यमोहनीय, ए तेर प्रकृ. तिनी उत्कृष्टी स्थिति होय. तिहां अबाधाकाल एक हजार वर्षनो होय, तेटला वर्षे हीन दश कोडाकोडी सागर ए तेर प्रकृतिनुं कर्मदल निषेककाल उर्जना अपवर्तना. विना खानाविक वेदनकाल जाणवो. तेमध्ये अपवर्तनायें घटे, उदवर्तनायें तथा संक्रमणादिके करी अधिक स्थिति पण होय. एवं ब्याशी प्रकृतिनी स्थितिनुं कालमान कयु. अने मिसत्तरि के मिथ्यात्वमोहनीयनी उत्कृष्टी स्थिति सीत्तेर कोमाकोडी सागरोपम सात हजार वर्ष, अबाधाकालें हीन उत्कृष्ट स्थिति कर्म निषेककाल जाणवो, श्रने सम्यक्त्वमोहनीयनो स्थितिबंध नथी तेश्री स्थितिबंध तथा अबाधाकाल न कह्यो. अने उदयकाल शठ सागरोपम पूर्वकोमी पृथक्त्वें अधिक जाणवू. तथा मिश्रमोहनीयनो निषेककाल अंतर मुहूर्तनों, एटले पंच्चाशी प्रकृति थर. ___ तथा मणुग के मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वी, श्वीसाएसु के स्त्रीवेद अने शातावेदनीय, ए चार प्रकृतिनी उत्कृष्टी स्थिति पमरस के पंदर कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण पंदरसें वर्ष अबाधाकाल ते पंदरसें वर्ष हीन कर्मस्थिति कर्मनिषेक काल जाणवो. अहीं जो पण मनुष्यानुपूर्वीनो उदय तो वक्रगतियें बे त्रण समय लगें होय, तो एटलो निषेक काल केम संनवीयें? तथापि एनो उदय मनुष्यगतिमध्ये संक्रमण करणे करी संक्रमावी लोगवे, तेथी दलिक रचना विशेष निषेककाल जाणवो. एवं नेव्याशी प्रकृति कही ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ ३० ॥ जय कुब अरइ सोए, विनवि तिरि उरख निरय उगनीए॥ तेअपण अधिर बक्के, तसचज थावर ग पणिंदि॥३१॥ अर्थ-नय के जयमोहनीय, कुछ के जुगुप्सा मोहनीय, अरइसोए के परति मोहनीय, शोकमोहनीय, विउवि के वैक्रियशरीर, वैक्रियअंगोपांग तथा मतांतरें वैक्रियसंघातन, वैक्रियवैक्रियबंधन, वैक्रियतैजसबंधन, वैक्रियकार्मणबंधन, वैक्रियतैजसकार्मणबंधन, ए वैक्रिय सप्तक कहीये. जे जणी वैक्रिय शरीर बांधतां ए साते नेली बंधाय. एवं अगीबार थर, तथा बारमी तिरि के तिर्यंचगति, तेरमी तिर्यचानुपूर्वी, ए तिर्यंचहिक, उरल के० चौदमुं औदारिक शरीर, पंदरमुं औदारिक अंगोपांग, ए औदारिकछिक तथा मतांतरे औदारिकसंघातन, औदारिकऔदारिकबंधन, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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