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शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ चालीस कसाएसु, मिन लहु निछुएह सुरहि सिय महुरे ॥
दसदो सह समदिया, तेहालिदं बिलाईणं ॥ ए॥ अर्थ- चालीसकसाएसु के अनंतानुबंधीथा चार, अप्रत्याख्यानावरण चार, प्रत्याख्यानावरण चार, संज्वलना चार, ए शोल कषायनो बंध, चालीश कोमाकोमी सागरोपमनी उत्कृष्ट स्थिति बंध उत्कृष्ट संक्शें मिथ्यात्व गुणगणे, संनिया मिथ्यात्वीने होय, अने चार हजार वर्ष अबाधाकाने हीन निषेककाल जाणवो. एटले चोपन्न प्रकृति कही. तथा एक मिन के मृड एटले सुकमाल स्पर्श, बीजो लहु के लघुस्पर्श, त्रीजो निकाह के० स्निग्ध एटले चीकटस्पर्श, अने चोथो उस स्पर्श, पांचमो सुरहि के सुरनि गंध, हो सिय के श्वेत एटले उज्ज्वल वर्ण, सातमो महुरे के मधुर रस, ए सात नामकर्मनी प्रकृतिनी उत्कृष्ट स्थिति, दस के दश कोमाकोमी सागरोपमनी जाणवी. तेनो अबाधाकाल एक हजार वर्ष एटले कालें हीन कर्मदल निषेक रसोदयकाल जाणवो.
तेवार पड़ी नामकर्मनी प्रकृतिना एकेका वर्ण तथा एकेका रसें प्रत्येक दोससमहिया के अढी कोमाकोमी सागरोपमनी स्थिति वधारीये. तेहालिदं बिलाईणं के ते केम हालिजवर्ण अने श्राम्ल रस, ए बे नामकर्मनी प्रकृतिनी उत्कृष्ट स्थिति सामावार कोडाकोमी सागरोपमनी ते सामाबारसें वर्ष अबाधा कालेंहीणी स्थिति रसोदय काल जाणवो. तथा रक्तवर्ण अने कषायेलो रस, ए बे नामकर्मनी प्रकृतिनी पंदर कोमाकोमी सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति, ते पंदरसें वर्ष अबाधाकालें हीणी कर्मदलनी स्थितिनो रसोदय काल जाणवो. तथा पीतवर्ण अने कटुक रस, ए बे नामकर्मनी प्रकृतिनी सामासत्तर कोमाकोडी सागरोपमनी उत्कृष्ट स्थिति अने साडासत्तरसें वर्ष अबाधा का हीन स्थिति कर्मदलिकनो निषेककाल जाणवो. श्यामवर्ण अने तीदण रस, ए बे नामकर्मनी प्रकृतिनो उत्कृष्ट स्थिति बंध वीश कोमाकोमी सागरोपम, बे हजार वर्ष अबाधाकालें हीन कर्म स्थिति कर्म निषेककाल जाणवो. ॥ इति समुच्च. यार्थः ॥ ए॥
दस सुद विदगइ उच्चे, सुर उग थिर बक्क पुरिस र दासे॥ मिडे सत्तरि मणु उग, इची साएसु पसरस ॥ ३०॥ अर्थ-दस के दश कोमाकोमी सागरोपमनो उत्कृष्टस्थितिबंध,एटली प्रकृतिनो होय, तेनां नाम कहे . सुह विहग के० एक शुजविहायोगति, उच्चे के बीजी उच्चैर्गोत्र श्रने सुरफुग के त्रीजी देवगति, चोथी देवानुपूर्वी तथा थिरबक्क के एक स्थिरनाम,
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