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________________ .६०६ शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ अर्थ-विग्घा के एक दानांतराय, बीजो लानांतराय, त्रीजो लोगांतराय, चोथो उपजोगांतराय, पांचमो वीर्यांतराय, ए पांच अंतराय कर्मनी प्रकृति तथा वरण के एक मतिज्ञानावरणीय, बीजो श्रुतज्ञानावरणीय, त्रीजो अवधिझानावरणीय, चोथो मनःपर्यवज्ञानावरणीय, पांचमो केवलज्ञानावरणीय, ए पांच ज्ञानावरणीय कर्मनी प्रकृति, तथा एक चकुदर्शनावरणीय, बीजुं अचकुदर्शनावरणीय, त्रीशुं श्रवधिदर्शनावरणीय, चोथु केवलज्ञानावरणीय, धने पांच निझा, तथा असाए के० अशातावेदनीय, एवं वीश उत्तरप्रकृतिनो तीसं के त्रीश कोमाकोडी सागरोपमनो उत्कृष्ट स्थितिबंध, मिथ्यात्वीने होय. तिहां बाधा त्रण हजार वर्षनी जाणवी. त्रण हजार वर्ष हीन कर्म स्थितिनो रसोदयकाल जाणवो. __ अने अहारसुहुम विगलतिगे के० अढार कोडाकोडी सागरोपमनी उत्कृष्ट स्थितिबंधकाल, एक सूक्ष्म, बीजो अपर्याप्त, त्रीजो साधारण, ए सूक्ष्म त्रिक तथा विकलत्रिक, एटले बेंजियजाति अने चौरिंजियजाति, एवं ब प्रकृतिनो अढार कोमाकोमी सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट स्थितिकाल जाणवो. अहीं अढारसें वर्षनो अबाधाकाल जाणवो. एवं बवीश प्रकृति थ. तथा पढमागिसंघयणे के प्रथमाकृति एटले पहेलुं समचतुरस्रसंस्थान तथा प्रथम वज्रषजनाराचसंघयण, ए बे प्रकृतिनी उस्कृष्टस्थिति दस के दश कोडाकोडी सागरोपमनी जाणवी. अहीं एक हजार वर्ष अबाधाकाल जाणवो. अने कुसुचरिमेसुगवुटि के आगला एकेक संस्थाने तथा एकेक संघयणे, एम बेबे प्रकृतिने विषे अनुक्रमें बे बे कोडाकोमी सागरोपमनी स्थितिबंधमां वृद्धि करीयें, एटले ए नाव जे न्यग्रोधसंस्थाने तथा ऋषजनाराचसंघयणे बार कोमाकोमी सागरोपमनी स्थिति अने बारसें वर्ष अबाधाकाल तथा सादि संस्थान अने नाराचसंघयणे चौद कोडाकोडीनी स्थिति अने चौदसें वर्ष अबाधाकालें हीन निषेक काल जाणवो. तथा वामनसंस्थाने मतांतरें कुब्जसंस्थाने अने अर्धनाराचसंघयणे शोल कोडाकोमी सागरोपम स्थिति तथा शोलसें वर्ष अबाधाकालें हीन निषेक काल तथा कुब्जसंस्थाने मतांतरें वामनसंस्थाने अने कीलिकासंघयणे अढार कोडाकोडी सागरोपमनी स्थिति अने अढारसें वर्षनो अबाधायें हीन निषेक काल तथा डंमसंस्थान अने बेवळे संघयणे वीश कोमाकोमी सागरोपमनी उत्कृष्ट स्थिति अने बे हजार वर्ष अबाधाकालें हीन वीश कोडाकोडी सागरोपम रसोदय काल जाणवो. एम ब संघयण तथा उ संस्थाननो उत्कृष्ट स्थितिकाल कह्यो. एवं आडत्रीश प्रकृतिनो स्थितिबंध कह्यो. ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ ७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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