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शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५
६०५ ॥ हवे मूलप्रकृतिनो जघन्य स्थितिबंध कहेले. ॥ मुत्तू कसाय हिश, बार मुहुत्ता जहन्न वेयणिए ।
अ65 नाम गोए, सु सेसएसु मुहुत्तं तो ॥२७॥ अर्थ-मुत्तूअकसाय के अकषाय एटले कषायोदय रहित एवं अगीश्रारमुं, बारमुं श्रने तेरमुं, ए त्रण गुणगणा मूकीने शेष सरागी गुणस्थानकें वेयणिए के वेदनीय कर्मनो अत्यंत जहन्न के जघन्य हिश्के स्थितिबंध, बारमुहुत्ता के बार मुहूर्त प्रमाण होय, तथा ग्रंथांतरें एक मुहूर्त्तनुं पण कयुं . अहींयां एटबुं विशेष जे कषायोदय रहित जे अगीश्रारमुं, बारमुं, अने तेरमुं गुणगणुं बे, तिहां कषायने अनावें स्थितिबंध, तथा रसबंध न होय. परंतु केवल योग प्रत्या प्रकृतिबंध तथा प्रदेशबंध होय, ते प्रथम समयें बांधे तथा बीजे समय वेदे अने त्रीजे समयें विणशे पण कषाय प्रत्यायिक स्थितिबंध न होय. ते जणी ते गुणगाणां अहीं वर्जित करयां बे. अहीं जघन्य वेदनीय स्थितिबंधे अबाधाकाल पण जघन्य अंतर मुहर्त्तनो होय, तेथी हीन शेष रसोदय काल समजवो अने एक श्रायुविना शेष सात कर्मनो जघन्य स्थितिबंधका अबाधाकाल पण जघन्य जाणवो. __ अध्छनामगोएसु के अने नामकर्म तथा गोत्रकर्म, ए बे कर्मनो जघन्य स्थितिबंधकाल अत्यंत विशुकपणे सूक्ष्मसंपरायने प्रांतें आठ मुहर्त प्रमाण होय, तिहां थबाधाकाल, अंतरमुहर्तनो होय, ए त्रण कर्मनो स्थितिबंध कह्यो.
सेसएसुमुदुत्तंतो के तेथी शेष रह्यां जे एक ज्ञानावरणीय, बीजु दर्शनावरणीय अने त्रीजुंअंतराय, ए त्रण कर्मनोसूमसंपराय नामा दशमा गुणगणाने प्रांते अने एक मोहनीयकर्मनुं बादरसंपराय नामा नवमा गुणगणाने प्रांते तथा आयुःकर्मनुं प्रथमनां बे गुणगणे अंतरमुहूर्त प्रमाण जघन्य स्थितिबंध होय. ॥२७॥ ___ ए रीतें सामान्यप्रकारें मूलप्रकृतिनो उत्कृष्ट स्थितिबंध तथा जघन्य स्थितिबंध कही. ने, हवे विशेष प्रकारे एकसो ने वीश उत्तरप्रकृतिनो उत्कृष्ट स्थितिबंध कहीयें बैयें. तथा बांधेतुं कर्म ज्यां लगे पोतानो विपाक देखाडे नहीं, तेने अबाधा कहीयें, तथा अबाधा काल पडी कर्मने वेदवाने प्रथम समय बहु अने तेथी वली द्वितीय समय हीन, तृतीय समयें घणुं हीन, एम कर्मदल वेदवा सन्मुख जे दलरचना विशेष तेने निषेक कहीये. एनी स्थापना कहेशे.
विग्घा वरण असाए, तीसं अहार सुदुम विगल तिगे॥ पढमा गिश् संघयणे, दस उसु चरिमेसु उग वुढी ॥॥
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