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________________ संग्रहणी सूत्र. ३७ नूत्तरचतुष्के ॥ १० ॥ इगती ससागराइ के० एकत्रीश सागरोपम श्रायुष्यनी जघन्य स्थिति होय, ने पुए के० वली सवजहन्न विश्न बि के० सवार्थ सिद्धनामा पांचमा अनुत्तर विमाने जघन्यायुनी स्थिति नथी. केमके श्रहीयां अजघन्योत्कृष्ट तेत्री सागरोपमनीज स्थिति बे. माटे. ॥ हवे वैमानिक देवीनी जघन्य तथा उत्कृष्टायु स्थिति दोढगाथा वडे कहे बे ॥ परिगहिच्यापिय राणिय || सोहम्मी सा देवीणं ॥ ११ ॥ पलियं दियंचकमा ॥ विई जहन्ना इजेय नक्कोसा ॥ पलियाई सत्त पमास ॥ तदय नव पंचवन्नाय ॥ १२ ॥ व्याख्या - वैमानिक देवीनी उत्पत्ति सौधर्म तथा ईशान ए बे देवलोकने विषे होय d. ते देवी बे प्रकारनी बे. एक परणेली कुलांगना सरखी ते परिगृहीता देवी कहीए. बीजी साधारण वेश्या सरखी ते अपरिगृहीतादेवी जावी. तेमांहे सौधर्म देवलो - की परिगृहीता तथा अपरिगृहीता देवीनुं जहन्नान के० जघन्यायुष्य पक्षियं के० एक पक्ष्योपमनुं जाणवुं. छाने बीजा ईशान देवलोकनी देवीउनुं जघन्यायु एक पल्यामाहियं के अधिक एटले एक पल्योपम काकेरुं जाणवुं. हवे एनं उक्कासा के० उत्कृष्टुं यु कहे बे. सौधर्मदेवलोके परिगृहीतादेवीनं पलिया सत्त के सांत पल्योपमनुं, ने परिगृहीतादेवीनुं पन्नास के० पचाश पस्योपमनुं उत्कृष्टायु जाणवुं तद के० तेमज ईशानदेवलोके परिगृहीतादेवीनं नव के० नव पल्योपम ने अपरिग्रहीतादेवीनं, पंचवन्ना के पंचावन पढ्योपमनुं श्रायुष्य जाणवुं देवलोकना देवोनी जे जोग्य पतिव्रता देवी बे, तेहने परिगृहीता देवी कहीए. थाने सौधर्मदेवलोके प रिगृहीता देवीनां व लाख विमान बे; ते वेश्यानी जाति बे. माटे एहने देव वेश्या कहीए. तेमां पण जे त्रीजा देवलोकनी निभाए बे, ते त्रीजे देवलोकेज जाय. तथा ईशान देवलोके परिगृहीता देवीनां चारलाख विमान बे, अहीयां पण जे चोथा देवलोकना देवताने जोग्य योग्य बे. ते चोथे देवलोकेज जाय; एम सर्वत्र जाणवुं ॥१२॥ एटले वैमानिक देवी उनी आयु स्थिति कही. हवे देवीने अधिकारे असुरादिकनी महिषीनी संख्या एक गाथावडे हे . इंद्राणी १३ ॥ पण बच्चन चनय ॥ कमेण पत्तेय मग्ग महिसी ॥ असुर नागाइ वंतर ॥ जोईस कप्प इगिंदणं ॥ तेजरमांहे प्रधान पटराणी सरखी जे देवी तेने ग्रमहिषी कहीए. ते असुरा के० असुरकुमारना चमरेंद्र तथा बलिंद्र ए जवनपतिना पहेला निकायना व्याख्या - सर्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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