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________________ ३६ संग्रहणीसूत्र. हिय के० एकेका सागरोपमनी वृद्धि करीए ते जा के० यावत् उवरिगेविजे के० उपरली नवमी ग्रैवेयके इगतीस के० एकत्रीश सागरोपमनुं आयुष्य याय, ते कही। बतावे. आवमा सहस्रार देवलोके ढार सागरोपम, नवमा खानतदेवलोके उगणीश, दशमा प्राणतदेवलोके वीश, अग्यारमा आरणदेवलोके एकवीश, बारमा अद्भुत देवलोके बावीश सागरोपम, प्रथम हे ठिम हे हिम ग्रैवेयके त्रेवीश, बीजे हे हिम मध्यम ग्रैवेयके चोवीश; त्रीजे हे हिमजवरिम ग्रैवेयके पचीश, चोथे मध्यम हे हिम यैवेयके वीश, पांचमे मध्यममध्यम ग्रैवेयके सत्यावीश, बठे मध्यमोवरिम ग्रैवेयके वीश, सातमे वरिम हिम ग्रैवेयके उगणत्रीश, आठमे उवरिम मध्यम ग्रैवेयके त्रीश, नवमे उवरिमजवरिम ग्रैवेयके एकत्रीश सागरोपम उत्कृष्टी आयुष्यनी स्थिति होय ॥ ८ ॥ एही आगल अणुत्तरेसु के० पांच अनुत्तर विमानोनेविषे एकेका सागरोपनी वृद्धि करीए नहीं, किंतु श्रहीयां स्वनावे श्रायुष्य तित्तीस के० तेत्री सागरोपमनुं होय, एरीते सोहम्माइसु के० सौधर्मादिकथी मांडीने पांच अनुत्तर लगी इमा के० ए वैमानिक देवना आयुष्यमी हि के० स्थिति ते जिहा के० उत्कृष्टी कही. व्याख्या ॥ दवे ए वैमानिक देवोना त्र्यायुष्यनी जघन्य स्थिति बे गाथावडे कदे ॥ बे सोढ़म्मे ईसा ॥ जहन्न ठिई पलिय महियं च ॥ ए ॥ दो सादि सत्त दस चनदस ॥ सत्तर यराई जा सहस्सारो ॥ तप्पर इक्किक्कं ॥ दियं जाणुत्तरचनके॥१०॥ इगती ससागराई सबठे पुणजदन्ननिचि सोहम्मे के सौधर्मदेवलोके तेर प्रतरे प्रत्येके पलिय के० एक पढ्योपमनी जहन्नई के० जघन्य स्थिति आयुष्यनी जावी. अने ईसा के ईशान देवलोके पयोपमने श्रसंख्यातमे जागे अहिां के० अधिक एक पल्योपमनुं आयुष्य जावं. ॥ ए ॥ श्रहीयांथी आागल त्रीजा सनत्कुमारे बे सागरोपम जघन्य स्थिति, चोथा महेंद्रे बे सागरोपम जाकेरा, पांचमा ब्रह्मदेवलोके सात सागरोपम, बडा लांतके दश सागरोपम, सातमा महाशुक्रे चउद सागरोपम. एम जा के० यावत् श्रामा सहस्सारो के सहस्रार देवलोके सत्तरसागरोपम, पढे तप्पर के० तेहनाजपर नतादिक देवलोकने विषे इक्किकहियं के० एकेको सागरोपम वधारता जइए ते; जा के० यावत् एत्तरचनके के० चार अनुत्तर विमाने एकत्रीश सागरोपमनी प्रत्येके जघन्य स्थिती याय ते कहे बे. खानते १७ प्राणते १५ आरणे २० ते २१ एमज नवे के एकेक वधारतां नवमे ग्रैवेयके त्रीश सागरोपम जघन्यायुष्यनी स्थिति थाय. तेवारपढी एक विजय, बीजो विजयांत, त्रीजो जयंत, चोथो अपराजित, ए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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