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________________ ३५ संग्रहणीसूत्र तारा तथा ताराना विमानवासी देवोनुं उत्कृष्टायु चउन्नागाहिग के पक्ष्योपमनो चोथो नाग विशेषाधिक, एटले काश्क झालं, तथा तेमनी देवीणं के देवीउनु उत्कृष्टायु अमनाग के० पस्योपमनो आग्मोजाग अहिग के कांश्क विशेषाधिक जालं आज के आयु जाणवू. एटले देवो तथा देवी मलीने पांचे ज्योतषिना युगलनुं उत्कृष्टायु कडुं. __ हवे जघन्यायु कहेले. अहींयां नावार्थ ए जे जे, चंप्रमा, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र थने तारा-ए पांच जातना ज्योतषिमां चंप्रमा अने सूर्य ए बे इं . बाकी त्रण विमानना धणीउने, तेथी तेमनुं जघन्य तथा मध्यमायु न होय किंतु उत्कृष्टज होय. ते मूकीने चउजुअले के चार युगल ते-एकतो चंजमाना विमानवासीदेव श्रने विमानवासी देवी, पण चंजमा पोते नही; ए एक युगल. तथा सूर्यना विमानवासी देव अने देवी; ए बीजुं युगल. तथा ग्रहना विमानवासी देव अने देवी, ए त्रीगँ युगल. अने नक्षत्रना विमानवासी देव श्रने देवीउ, ए चोथु युगल.ए चारे युगलनु जघन्यायु, पठ्योपमनो चनजागो के चोथो जाग होय, अने ताराना विमानवासी देव तथा देवी ए पंचमए के पांचमा युगलनु जघन्यायु पढ्योपमनो श्रमजाग के पाठमोजाग जाणवू. एटले ज्योतषि देव तथा देवीउँनाथायुष्यनी जघन्योत्कृष्टस्थिति कही। ॥ हवे वैमानिकदेवोनी उत्कृष्ट श्रायुस्थिति दोढ गाथाए करी कहे ॥ दोसादि सत्त सादिय ॥ दस चनदस सतर अयर जा सुक्को ॥३किक महिय मित्तो ॥जा गती सुवरि गेविजे ॥ ७॥ तित्तीसणुत्तरेसु ॥ सोदम्माश्सु श्मा लिई जिता ॥ व्याख्या-दोसाहिसत्त साहिय दस चउदस सतर श्रयर-एरीते जासुको के० यावत् शुक्र देवलोक सुधी उत्कृष्ट श्रायुस्थिति जाणवी ते कहे.जेहनो घणा काले तरीने पार पामीए ते सागर कहीए. ते सागरेकरी जे काल मविजे तेने सागरोपम कहीए. त्यां सौधर्मदेवलोके बेल्ले तेरमे प्रतरे दो के बे सागरोपमना श्रायुष्यनी उत्कृष्ट स्थिति जाणवी. अने बीजे ईशान देवलोके वे सागरोपम पक्ष्योपमने असंख्यातमे नागे साहि के साधिक एटले जाफेरा. त्रीजे सनत्कुमारे सत्त के० सात सागरोपम, चोथे महेंजदेवलोके सातसागरोपम पढ्योपमने असंख्यातमे जागे साहिय के० साधिक ते फाफेरा. पांचमे ब्रह्मदेवलोके दस के० दश सागरोपम, बछे लांतक देवलोके चउदस के चउद सागरोपम, सातमे शुक्रदेवलोके सत्तरथयर के० सत्तरसागरोपम. इत्तो के ए पली शुक्र देवलोकथी उपरना जे देवलोक डे, त्यां शक्किकम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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