SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४ संग्रहणीसूत्र. केमके श्रीपन्नवणासूत्रमध्ये कधुं बे. - वाणमंतरीणं जंते केवश्यं कालं हि पन्नता गोयमा जहन्नेणं दस वास सहस्लाई उक्कोसेणं श्ररुप लिदेवमं ॥ ए वचने व्यंतरीक देवी नुं उत्कृष्टुं श्रायुष्य श्रई पल्योपम बे. अने श्री, ही, धृति, कीर्त्ति, बुद्धि, अने लक्ष्मीए ब देवीउनुं श्रायुष्य एक पल्योपम बे, ते देवी जवनपतिनी बे. व्यंतरी कनी नथी. एम जाणवुं ॥ ४ ॥ हवे चंद्रमा, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, अने तारा-ए पांच जातना ज्योतबिना देवो तथा देवीना श्रायुष्यनी जघन्योत्कृष्टी स्थिति बे गाथा अने एक पढ़ेकरी कहे. पलियं प्रयिं ससि रवीणं ॥ ५ ॥ लरकेण सदस्सेाय ॥ वासाण गढ़ा पलिय मेएसिं ॥ वि प्र देवीणं ॥ कमेण नरकत्त ताराणं ॥ ६ ॥ पलि चननागो ॥ चन पड जागादिगान देवीणं ॥ चन जुले च जागो जहन्न मड जाग पंचम ॥ ७ ॥ व्याख्या - ज्योत षिदेवोना बे भेद बे. एक चर अने बीजा स्थिर. तेमां छाढी द्वीपमांहे जे ज्योतिषचक्रबे ते चर; छाने अढी द्वीपश्री बाहेर जे ज्योतिषचक्र बे ते स्थिर कद्देवाय बे. त्यां जंबुद्वीप दे देने असंख्याता द्वीप समुद्रमांहे जे ससि के० चंद्रमा श्रने चंद्रमाना विमानवासी देवो बे, तेमनुं उत्कृष्टायु पलिया दिये के० एक पल्योपमनपरे लरके के० एक लाख वर्ष अधिक, तथा रवीणं के० सूर्य ने सूर्यना विमानवासी देवोनुं उत्कृष्टायु एक पल्योपमउपर सदस्सेणयवासाय के० एकहजार वर्ष अधिक बे. तथा गहाण के० ser ग्रहना विमानवासी देवोनुं पलिय के० एक पल्योपमनुं उत्कृष्टायु होय. अने एएसिं के० ए पूर्वोक्त चंद्रमा, सूर्य तथा ग्रह तेमज चंदमा, सूर्याने ग्रहना विमानवासी देवोनुं जे श्रायुष्य कयुं; तेथी तेमनी देवीणं के० देवीना आयुष्यनी विई के० स्थिति ते शुद्धं के० श्रई जाणवी. एटले चंद्रमानी देवी तथा चंद्रमाना विमानवासी देवोनी देवीउनुं उत्कृष्टायु श्र पस्योपम छाने पचास हजार वर्ष उपर तथा सूर्यनी देवी ने सूर्यना विमानवासी देवोनी देवीउनुं उत्कृष्टायु अर्को पल्योपम ने पांचसे वर्ष उपर तथा ग्रहनी देवी तथा ग्रहना विमानवासी देवोनी देवीउनुं उत्कृष्टायु अर्को पल्योपम जाणवुं. एम ए त्रणे ज्योतषिनी देवीना श्रायुष्यनी स्थिति ते देवताना पोताना आयुष्यथी अर्क होय. हवे कमेणनस्कत्तताराणं के० अनुक्रमे नक्षत्र तथा तारानुं उत्कृष्टायु कहे बे. ॥ ६ ॥ नक्षत्र तथा नक्षत्रना विमानवासी देवोनुं उत्कृष्टायु पलिय के० श्रपत्योपमनुं जाणवुं तथा तेमनी देवीउनुं चउजाग के० पल्योपमानो चोथोजाग आयु होय. अने Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy