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________________ यश शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ ५ हवे पुल विपाकीनी प्रकृति कहे बे. जे पोतानी शक्ति शरीरादिक पुगलने विषे देखा ए प्रकृतिनो करेलो गुण तथा अवगुण, अनुग्रह, उपघात, शरीरादिकनो. कर्मपुलने विषे होय, तेथी ए पुजलविपाकीनी प्रकृति कहियें. जो पण अहीं कंटकादिक अशुभ फल पामी अशातावेदनीयज पोतानो विपाक देखाडे बे. तथा फूल, चंदन, कर्पूर, कस्तुरी प्रमुख शुज पुल लइने शातवेदनीयज पोतानो विपाक देखाडे बे. तोपण ए शाता तथा अशातावेदनीयने पुल विपाकीनी प्रकृति न कही. परंतु ए प्रकृतिनो कस्यो अनुग्रह, उपघात, जीवने होय. माटें ते कहीयें ढैयें. नाम धुवोदय च तणु, वघाय सादारणिय जोतिगं ॥ पुग्गल विवागि बंधो, पयइ हिइ रस पएसत्ति ॥ २१ ॥ अर्थ- नामधुवोदय के एक निर्माण, बीजी स्थिर, त्रीजी अस्थिर, चोथी शुज, पांचमी शुज, बही तैजस, सातमी कार्मण, आठमी वर्ण, नवमी गंध, दशमी रस, अगीयारमी स्पर्श ने बारमी गुरुलघु, ए बार प्रकृति नामधुवोदयी कहेवाय. ए बारने अनुक्रमें अंगोपांग नोकर्मपुङ्गलनुं गमनुं गम जोमयुं, हाड दांतनुं कर्म फलनो स्थिरबंध तथा लोही लालनो अस्थिर बंध, तेमज मस्तकादिक शुभ, पगप्रमुख अशुभ, शरीर पुजलनो वर्ण, गंध, रस, स्पर्शादिक पुगलने विषे होय, ते जी ए बार प्रकृति पुजलविपाकीनी कही, छाने चतणु के० तनुचतुष्कनी श्रढार प्रकृति, तेनां नाम कहे बे. एक तो धौदारिक, वैक्रिय ने श्राहारक, ए त्रण शरीर तथा बीजां एज त्रण शरीरनां उपांग त्रण, त्रीजा संघयण व अने चोथा संस्थान ब, एवं तनुचतुष्कनी अढार प्रकृति पण पुलविपाकीनी बे. जे जणी ए शरीरनामकर्मना उदयकी श्रदारिकादिक शरीरपणे पुजल परिणामे बे. तथा अंगोपांगपणे तथा कारपणे तथा हामसंधिपणे पुजल परिणमे बे. ए कर्मपुङ्गलने विषे पोतानी शक्ति दीपावे . ते जणी पुल विपाकीनी प्रकृति कहीयें. एवं त्रीश प्रकृति कही. उवघाय के० उपघात नामकर्मने उदयें जीवने अंगुली प्रमुख अधिक अंग होय, ते पण पोतानी शक्ति पुगलने विषे देखाडे बे, ते जणी तथा सादारणिय के० साधारण नामकर्मनो उदय पण शरीरपर्याप्ति पूरी करया पढी उदय श्रावे तेथी घणा जी - वनुं एक साधारण शरीर होय, तेथी ए पण पुल विपाकीनी प्रकृति बे, तथा ए थकी इतर प्रत्येक नामकर्म पण शरीराश्रित बे, ते माटें पुल विपाकीनी प्रकृति बे, ने जोतिगं के० उद्योत, श्रातप ने पराघात, ए उद्योतत्रिक पण शरीरपुफलने विषे पोतानी शक्ति दीपावे, तेथी करी जीवनां शरीर, शीतप्रकाशवान् तथा उम Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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